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9 साल के लंबे इंतजार के बाद स्थाई मंदिर में विराजमान हुई मां भगवती धारी देवी

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श्रीनगर। हिन्दुओं की आराध्य देवी मां भगवती धारी अपने मूल स्थान से 22 मीटर ऊपर अलकनंदा नदी के बीचों बीच बने नव निर्मित मंदिर शनिवार सुबह मां धारी देवी को अस्थाई मंदिर से स्थाई मंदिर में विराजित कर दिया गया। 2013 में 16 जून की शाम मां धारी की प्रतिमा को प्राचीन मंदिर से हटा दिया गया था। इस शुभ अवसर के साक्षी बनने के लिए बड़ी संख्या में काली उपासक धारी देवी मंदिर पहुंचे।

पिछले चार दिनों से चल रहा था शतचंडी महायज्ञ


शनिवार को सुबह 7ः45 पर वेदमंत्रों के स्थानीय पुजारी व न्यास के सचिव जगदंबा पांडे के सस्वर पाठ के बीच चर लग्न (मकर) में भगवती की मूर्ति अस्थाई मंदिर से उठाकर स्थिर लग्न (कुंभ) में नव निर्मित मंदिर में स्थापित की गयी। आचार्य डा नवीन पांण्डेय, आचार्य आनंद प्रकाष नौटियाल, वाणी विलास डिमरी, डा. हरि शंकर डिमरी के द्वारा शतचंडी पाठ, रूद्रा पाठ, महाविद्या पाठ के द्वारा नए मंदिर में जागृति लाई गयी। इसके बाद मंदिर में षोडशोपचार पूजन किया गया व पिछले चार दिनों से चल रही शतचंडी यज्ञ की पूर्ण आहुतियां दी गयी। मंदिर में भगवती की मूर्ति स्थापित होने के बाद मां भगवती आरती उतारी गयी। इसके बाद भक्तों के लिए पूर्व की भांति दर्शनों के लिए मंदिर को खोला गया।

51 क्विंटल फूलों से सजाया गया था धारी देवी मंदिर
अलकनंदा के बीचों बीच बने मां धारी देवी के नए मंदिर को 51 क्विंटल गेंदे के फेलों से सजाया गया। वहीं मंदिर में रात्रि के वक्त के लिए लाइटिंग की गयी। जिससे दूर से ही मंदिर की शोभा देखते ही बन रही थी। https://www.facebook.com/Sarthak_Pahal-101257265694407/

देवी काली को समर्पित है मंदिर
देवी काली को समर्पित यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीय है। एक पौराणिक कथन के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनी और देवी ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर की विशेष पूजा की जाती है। देवी काली का आशीर्वाद पाने के लिए लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है।

दिन में तीन बार रूप बदलती हैं मां भगवती
कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद माता धारी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह कन्या रूप में दिखती है, दिन में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। माता को लेकर मान्यता है कि वह चारधाम की रक्षा करती हैं। इसीलिए मां को पहाड़ों की रक्षक देवी भी माना जाता है।

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