उत्तरप्रदेशक्राइमदेश-विदेशबड़ी खबरयूथ कार्नर

पिता चलाते थे तांगा, बेटे ने 17 साल में किया पहला मर्डर, फिर खून से सनते गये हाथ

Listen to this article

सार्थकपहल। पिता तांगा चलाते थे। बेटे ने 17 साल में पहला मर्डर का आरोप दर्ज हुआ। अतीक वो नाम था जिसकी एक समय खूब तूती बोलती थी। आलम ये था कि अपराध की दुनिया हो या राजनीति की, जो अतीक कहता था वही होता था। ये वो दौर था जब अतीक का नाम प्रयागराज ही नहीं, बल्कि पूरे यूपी में गूंजता था।

ये कहानी है माफिया अतीक अहमद की। शनिवार को अतीक और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई। दोनों चार दिन की पुलिस रिमांड पर थे। प्रयागराज के सरकारी अस्पताल में मेडिकल के लिए पुलिस ले गई थी। यहां से बाहर निकलने पर दोनों मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे और इसी वक्त तीन हमलावरों ने दोनों को गोलियों से भून दिया। अतीक को सिर पर सटाकर गोली मारी गई और इसके बाद अशरफ पर हमला हुआ।

जिस जमीन पर हाथ रख दे, समझो वो अतीक की हो गयी
कहा जाता है कि उस वक्त अतीक जिस भी जमीन, घर या बंगले पर हाथ रख देता था, उसका मालिक उसे खाली करके चला जाता था। आज हम उसी अतीक की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे वह अपराध से लेकर राजनीति की दुनिया तक का चर्चित नाम बन गया? कैसे एक तांगे वाले के बेटे ने दशहत का ऐसा साम्राज्य खड़ा किया कि कानून भी उसके आगे बौना साबित होता रहा।

10वीं में फेल होने के बाद आया बदमाशों की संगत में
10 अगस्त 1962 को इलाहाबाद में अतीक अहमद का जन्म हुआ। पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर परिवार चलाते थे। अतीक घर के पास में स्थित एक स्कूल में पढ़ने लगा। 10वीं में पहुंचा तो फेल हो गया। इस बीच, वह इलाके के कई बदमाशों की संगत में आ गया। जल्दी अमीर बनने के लिए उसने लूट, अपहरण और रंगदारी वसूलने जैसी वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया। 1997 में उसपर हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ।

लगातार पांच बार इलाहाबाद पश्चिमी सीट से रहा विधायक
चांद बाबा मारा गया तो इलाहाबाद ही नहीं, पूरे पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में अतीक अहमद का सिक्का चलने लगा। साल 1991 और 1993 में भी अतीक निर्दलीय चुनाव जीता। साल 1995 में लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड में भी उसका नाम सामने आया। साल 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बना। 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा और हार गया। फिर 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से पांचवीं बार विधायक बना। https://sarthakpahal.com/

अतीक के खिलाफ नहीं मिलते थे उम्मीदवार
अतीक आतंक का पर्याय बन चुका था। उसकी दहशत ने आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक हस्तियों को भी परेशान करना शुरू कर दिया। उसका खौफ इतना हो गया था कि शहर पश्चिमी से कोई उसके खिलाफ चुनाव लड़ने से भी डरता था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button