केएस रावत। पौड़ी गढ़वाल के डाडामंडी, थलनदी, कोटद्वार भाबर का मवाकोट और बिलखेत क्षेत्र मकर संक्रांति पर होने वाले गेंद मेले (गिंदी कौथिग) के रंग में डूबा हुआ है। बुधवार को गिंदी कौथिग पर गिंदी (एक खास किस्म की गेंद) खेली जाएगी।
गिंदी कौथिग पौड़ी गढ़वाल जिले के थलनदी, डाडामंडी, मवाकोट, देवीखेत, दालमीखेत, और बिलखेत के सांगुड़ा मंदिर समेत कई गांवों में मकर संक्रांति के दिन पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन थलनदी और डाडामंडी का गिंद्दी मेला पूरे इलाके में काफी रोमांचक रहता है। इस अवसर पर प्रीतम भरतवाण को विशेष तौर पर आमत्रित किया गया था। उन्होंने अपने सुरों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। दर्शक उनके गीतों पर झूमते गाते नजर आए।
बकरे की खाल से बनाई जाती है गिंद्दी
गेंद बकरे की खाल से बनाई जाती है, जिसका वजन करीब 20 किलो होता है। इसके चारों तरफ एक-एक कंगन मजबूती से लगे होते हैं। दोनों पट्टियों (उदयपुर और अजमीर) के लोग निर्धारित स्थान पर ढोल-दमाऊं और नगाड़े बजाते हुए ध्वज लेकर एकत्र होते हैं। थलनदी में जहां अजमीर और उदयपुर पट्टियों के बीच गेंद खेली जाती है, वहीं डाडामंडी में लंगूर और भटपुड़ी पट्टियों के बीच गिंद्दी खेली जाती है।
महाभारत काल से जुड़ा है थलनदी गेंद मेले का इतिहास
थलनदी गेंद मेले का संबंध महाभारत काल से माना जाता हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय महाबगढ़ में बिताया था। इसी दौरान कौरव सेना ने उन्हें थलनदी के किनारे देख लिया और दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया। https://sarthakpahal.com/
कुछ लोगों की यह मान्यता है कि अजमीर पट्टी के नाली गांव के जमींदार की गिंदोरी नाम की लड़की का विवाह उदयपुर पट्टी के कस्याली गांव में हुआ था। पारिवारिक विवाद होने पर गिंदोरी घर छोड़कर थलनदी आ गई। नाली गांव के लोगों को जब पता चला कि गिंदोरी ससुराल छोड़कर आ रही है, तो वे उसे ले जाने लगे, जबकि कस्याली गांव के लोग उसे वापस ससुराल ले जाने का प्रयास करने लगे। दोनों गांव के लोगों के बीच संघर्ष में गिंदोरी की मौत हो गई। तब से थलनदी में दोनों पट्टियों में गेंद के लिए संघर्ष होता है।