बदरीनाथ, 17 सितम्बर। मान्यता है कि बदरीनाथ में स्थित ब्रह्मकपाल में तर्पण और पिंडदान करने से सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। कहते हैं कि जब भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर विचलित हो गया था तब भगवान शिव ने उसे काट दिया था जो बदरीनाथ के पास अलकनंदा नदी के किनारे गिरा। यह आज भी यहां पर शिला के रूप में अवस्थित है।
बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यहां पिंडदान व तर्पण करने से सात पीढि़यों का उद्धार हो जाता है। मंगलवार (आज) से 15 दिनों तक यहां पिंडदान व तर्पण करने वालों का तांता लगा रहेगा।
बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल को कपालमोचन तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर विचलित हो गया था तब भगवान शिव ने उसे काट दिया था जो बदरीनाथ के पास अलकनंदा नदी के किनारे गिरा। यह आज भी यहां पर शिला के रूप में अवस्थित है। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक यहां देश से लोग पितरों का पिंडदान व तर्पण करने आते हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष में यहां भीड़ लग जाती है।
ब्रह्मकपाल को लेकर मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति ने कभी भी पितरों का कहीं भी पिंडदान या तर्पण नहीं किया तो वह यहां आकर कर सकता है। यहां पिंडदान व तर्पण करने के बाद अन्यत्र कहीं भी पिंडदान या तर्पण नहीं करना चाहिए क्योंकि यह पिंडदान करने का श्रेष्ठ स्थान माना गया है। ब्रह्मकपाल के तीर्थ पुरोहित हरीश सती ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में यहां पिंडदान व तर्पण करने वालों की भीड़ लगी रहती है। https://sarthakpahal.com/