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‘धराशायी’ आर्मी कैंप का मिटा नामोनिशां, तबाही के बाद बदल गया भारत का ‘स्विटजरलैंड’ हर्षिल का नक्शा

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उत्तरकाशी, 7 अगस्त। कुदरत के कहर ने धराली और हर्षिल में त्राहिमाम मचा दिया है, ऐसा त्राहिमाम कि जलप्रलय में धराली धराशायी हो गया और हर्षिल के आर्मी कैंप का नामोनिशां मिट गया. धराली और हर्षिल  5 अगस्त से पहले बेहद खूबसूरत और मनमोहक था, वही धराली 5 अगस्त की आपदा के बाद पूरी तरह उजड़ गया है. आर्मी का मेस, जो पहले 12 फीट ऊंचा था, अब आधे से ज्यादा जमीन के अंदर धंस चुका है. किचन का सामान—बाल्टी, बर्तन और अन्य चीजें—तितर-बितर पड़े हैं. मेस का दरवाजा इतना नीचे चला गया है कि अब वह खिड़की जैसा लग रहा है. यह दृश्य बताता है कि बाढ़ कितनी शक्तिशाली थी.

जहां 20 फीट से लेकर 50 फीट ऊंचे होटल, रिजॉर्ट और आशियाने बने हुए थे, सबकुछ मलबे के नीचे दफन हो गए हैं. पूरे गांव का नामो-निशान मिट चुका है. मानो कुदरत ने सब कुछ रौंद दिया. अब यहां सिर्फ मलबा नजर आ रहा है. धराली का कल्प केदार मंदिर करीब 1500 साल पुराना है, लेकिन कुदरत की विनाशलीला में पूरी तरह तबाह हो गया है. मलबे के बीच कल्प केदार मंदिर का सिर्फ ऊपरी हिस्सा नजर आ रहा है, यानी पूरा का पूरा मंदिर मलबे में दब चुका है.

यहां कुदरत ने ऐसा कहर ढाया कि धराली गांव की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल गई, आज धराली का चप्प-चप्पा अपनी बर्बादी की गवाही दे रहा है. धराली में एक पुल पानी में डूब गया है, उसके ऊपर से गुजरते हुए पानी का बहाव काफी तेज है, पुल अब सिल्ट में धंस चुका है, पूरी तरह डैमेज हो चुका है. दरारें पड चुकी हैं.

धराली से हर्षिल तक मची तबाही
पहले धराली में बादल फटा, सैलाब आया और तबाही मचाता हुआ आगे बढ़ गया. ये विनाशकारी प्रलय खीर गंगा नदी से होते हुए भागीरथी में आई. फिर भागीरथी नदी ने हर्षिल में अपनी विनाशलीला दिखाई. हर्षिल घाटी में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया कि सैलाब ने भारतीय सेना के कैंप को पूरी तरह मलबे मिला दिया. जिस हर्षिल को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है, जहां फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ की शूटिंग हुई, फिल्म का सबसे सुपरहिट गाना ‘हुस्न पहाड़ों का…’ यहां फिल्माया गया.

हर्षिल में तहस-नहस हुआ सेना का कैंप
हर्षिल के बारे में कहा जाता है कि प्रकृति ने इसे फुर्सत से संवारा है और आज उसी हर्षिल घाटी में कुदरत कयामत बनकर बरसी और सबकुछ तहस-नहस कर डाला. भारत-चीन सीमा पर बसा हर्षिल करीब 8 गांवों का एक समूह है. हर्षिल में बना भारतीय सेना का कैंप काफी अहमियत रखता है, लेकिन कुदरत ने भारतीय सेना के कैंप को पूरी तरह मलबे में मिला दिया है. सेना के इस कैंप की कहानी 1962 की भारत-चीन जंग से भी जुड़ी है, लेकिन कुदरत यहां ऐसा प्रलय लेकर आई कि अब सिर्फ और सिर्फ तबाही के निशान हैं.

मलबे में दबी हर्षिल की मार्केट
यकीनन आपने जब सैलाब आया, उसकी तस्वीरें देखी होंगी, लेकिन सैलाब ने कितनी तबाही मचाई, कैसे तबाही मचाई, ये जानना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि इसी से समझ आएगा कि सैलाब आने के बाद क्या-क्या हुआ? हर्षिल में एक इलाका 15 फीट के मलबे के नीचे दब चुका है. यहां अब कुछ भी नजर नहीं आ रहा है, हर्षिल की मार्केट दब गई है. 15 फीट नीचे आर्मी कैंप दफन हो चुका है. सेना के जवानों का कहना है कि यहां तबाही का सैलाब आया और सबकुछ मिटा दिया.

साथियों को ढूंढ रहे सेना के जवान
समुद्र तल से हर्षिल की ऊंचाई 7860 फीट है, इसे मिनी स्विटजरलैंड कहा जाता है. प्रकृति ने हर्षिल के हुस्न को जिस तरह से संवारा, आज उसी कुदरत ने सबकुछ पलभर में मिटा दिया. आर्मी कैंप में अब कुछ नहीं बचा है, 2-4 इमारतें बची हैं, वो भी पूरी तरह से मलबे में धंसी हुई हैं और आर्मी के जवान इस मलबे में अपने साथियों की तलाश कर रहे हैं. स्टोर में आर्मी मेस का सामान है. 14 राजपूताना के जवान अपने साथियों को ढूंढ रहे हैं. जब सैलाब आया तो उस वक्त आर्मी कैंप में 8 जवान और एक जेसीयू मौजूद थे, जो सैलाब आने के बाद से लापता हैं. उनकी तलाश की इसी मलबे में की जा रही है.

‘सैलाब में धराली से बहते हुए आए लोग’
आर्मी मेस की किचन की हाइट करीब 12 फीट थी, जो अब मलबे में दब चुकी है. आर्मी के अग्निवीर ने कहा कि लोग सैलाब में धराली से बहते हुए आ रहे थे, उन्होंने लोगों को बचाने की कोशिश की और उनके साथी भी देखते ही देखते सैलाब में गायब हो गए. आर्मी के जवान ने कहा कि कुछ लोग नाले में बहते हुए जा रहे थे, मैंने दो बंदों को देखा, मैंने मदद का हाथ बढ़ाया तो रपट गया फिसल गया. फिर एक पत्थर आया. जो बंदे बहकर जा रहे थे, उन्होंने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए. आर्मी बेस कैंप के दो फेमस गेस्ट हाउस करन और अर्जुन भी तहस-नहस हो चुके हैं.

रेस्क्यू ऑपरेशन में आई तेजी
धराली में तबाही के बाद अब रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी आई है. मौसम खुलने के बाद फंसे हुए लोगों को हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू करके उत्तरकाशी और देहरादून लाया जा रहा है, लेकिन अभी भी चैलेंज बना हुआ है, क्योंकि मलबे में भी बहुत सारी ज़िंदगियां दबी हो सकती हैं और इसके लिए मशीनों की ज़रूरत है. धराली जाने वाले सभी रास्तों को कामचलाऊ बनाया जा रहा है, ताकि रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए मौके पर मशीनरी पहुंच सके. अभी हालात ये हैं कि धराली या हर्षिल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है. क्योंकि कुदरत ने सबकुछ उजाड़कर रख दिया है. सिर्फ और सिर्फ हेलिकॉप्टर से ही वहां तक पहुंचा जा सकता है, कोई गाड़ी धराली तक नहीं जा सकती है. ऐसे में एक तरफ रास्ते तैयार किए जा रहे हैं, ताकि आगे तक मशीनरी को पहुंचाया जा सके, तो दूसरी तरफ चिनूक हेलिकॉप्टर को ऑपरेशन में लगाया गया है.

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