उत्तराखंड की केलशू घाटी…विघ्नहर्ता की जन्मस्थली, जहां गणेश मूर्ति का विसर्जन नहीं, बल्कि स्थापना होती है

उत्तरकाशी, 5 सितम्बर। पूरे भारतवर्ष में जहां गणेश विसर्जन धूमधाम से मनाया जाता है वहीं उत्तरकाशी जनपद में एक अनूठी परंपरा है। यहां गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन नहीं होता बल्कि उन्हें केलशू घाटी में स्थापित किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र तल से करीब 3100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित डोडीताल को गणेश जी की जन्मभूमि माना जाता है।
इसी कारण गणेश चतुर्थी से दस दिनों तक केलशू घाटी के ग्रामीण विशेष रूप से अगोड़ा गांव में गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी मूर्ति को मंदिर में स्थापित करते हैं। इस वर्ष धराली में आई आपदा को देखते हुए डोडीताल मंदिर समिति और केलशू घाटी के ग्रामीणों ने गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत ही सामान्य रूप से मनाया।
गणेश चतुर्थी के दिन जनपद मुख्यालय में मणिकर्णिका घाट से गंगाजल कलश में लाकर अगोड़ा मंदिर में स्थापित किया गया। वहां गणेश जी के लिए एक विशेष आसन तैयार किया गया और उन्हें विराजमान किया गया। पिछले आठ दिनों से वहां विशेष पूजा-अर्चना चल रही है।
समिति के प्रबंधक कमल रावत ने बताया कि आपदा के कारण इस बार उत्सव में भव्यता नहीं है। शुक्रवार रात को अगोड़ा मंदिर में भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा और शनिवार को नाग देवता की अगुवाई में गणेश जी की मूर्ति को गांव की पवित्र धारा में स्नान करवाया जाएगा। इसके बाद विशेष पूजा-अर्चना कर उन्हें मंदिर में स्थापित कर दिया जाएगा।
मां अन्नपूर्णा के साथ विराजमान हैं गणपति
अगोड़ा गांव से करीब 15 किलोमीटर पैदल ट्रैक की दूरी पर स्थित डोडीताल में गणेश जी का विसर्जन न करने का मुख्य कारण यही है। माना जाता है कि डोडीताल गणेश जी की जन्मभूमि है जहां वह मां अन्नपूर्णा के साथ मंदिर में विराजमान हैं। देश के दस प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक डोडीताल में गणेश जी की पूजा मां अन्नपूर्णा के साथ होती है। स्थानीय बोली में गणेश जी को यहां डोडीराजा कहा जाता है जो केदारखंड में प्रचलित नाम डुंडीसर का ही अपभ्रंश है। स्थानीय लोग केलसू को ही शिव का कैलाश मानते हैं। यहां हर साल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक और श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।