
देहरादून, 8 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से उत्तराखंड में 15 हजार से ज्यादा शिक्षकों की नौकरी दांव पर है. ऐसे में शिक्षक संघ ने केंद्र की सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए आंदोलन करने का मन बनाया है. शिक्षकों के इस आंदोलन को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी समर्थन मिला है.
दरअसल, प्रदेश में 2011 से पहले नियुक्त हुए लगभग 15 हजार से अधिक शिक्षकों के लिए टीईटी परीक्षा यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य कर दी गयी है, जिससे उत्तराखंड में हड़कंप मचा हुआ है. वहीं शिक्षक संघ भी आंदोलन की राह पर हैं. इधर शिक्षक संघ ने इस फैसले के लिए केंद्र की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
सुप्रीम कोर्ट ने टीचरों को टीईटी पास करना अनिवार्य किया
वहीं इस मामले पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने टीईटी की अनिवार्यता का विरोध करते हुए शिक्षकों की मांगों का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार शिक्षकों के लिए टीईटी टेस्ट अनिवार्य कर दिया है. इस आदेश के तहत यह कहा गया है कि 2011 से पहले वाले शिक्षकों के लिए टीचर्स पात्रता टेस्ट पास करना जरूरी है, लेकिन इतने वर्षों बाद शिक्षकों के लिए इस टेस्ट को पास करना कठिन हो गया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हजारों शिक्षकों के सामने नौकरी की तलवार लटक गई है. इन परिस्थितियों में राज्य सरकार को चाहिए कि केंद्र सरकार से मदद लेकर सुप्रीम कोर्ट मे 2011 से पहले वाले शिक्षकों के हितों की पैरवी करें.
हरीश रावत का कहना है कि पहले से ही सभी अर्हता पूरी कर चुके शिक्षकों के लिए अब टीईटी की परीक्षा उत्तीर्ण करना कठिन काम हो गया है. इस स्थिति में राज्य सरकार को अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखना चाहिए. हरीश रावत ने कहा कि हाल फिलहाल जो नए शिक्षकों के बैच आये हैं, वही एलिजिबिलिटी टेस्ट पास कर सकते हैं. लेकिन जिनको शिक्षण कार्य करते हुए 15 साल से अधिक समय हो गया है, उनके लिए टीईटी परीक्षा पास करना अब असंभव हो गया है. इस फैसले से हजारों शिक्षकों की आजीविका पर तलवार लटक गई है. ऐसे में राज्य सरकारों को चाहिए कि ठीक तरीके से राज्य सरकारें अपना केस रखें, जिससे आने वाले समय के लिए एलेबलिटीज टेस्ट लागू हो.



