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राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे, बीजेपी जगह-जगह आयोजित करेगी बड़े आयोजन

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लखनऊ, 5 नवम्बर। राष्ट्रगीत “वंदे मातरम” केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की आवाज़ है. यह वह स्वर है, जिसने गुलामी की बेड़ियों में जकड़े भारत को आज़ादी की राह दिखाई. जब-जब देश पर संकट आया, यह गीत हर भारतीय के हृदय में नई ऊर्जा, साहस और एकता का संचार करता रहा.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि “वंदे मातरम” में केवल मातृभूमि की स्तुति नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति श्रद्धा, त्याग और समर्पण की भावना निहित है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत हर आंदोलन और बलिदान का प्रेरणास्रोत बना. आज़ाद भारत में भी इसकी प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक है. यह गीत हमें स्मरण कराता है कि हमारा राष्ट्र केवल सीमाओं से नहीं, बल्कि साझा संस्कृति, भावनाओं और कर्तव्यबोध से निर्मित हुआ है.

वंदे मारतम को 1950 में मिला था राष्ट्रगीत का दर्जा
भूपेंद्र चौधरी ने बताया कि “वंदे मातरम” का सृजन वर्ष 1875 में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा किया गया था. इसका प्रथम वाचन वर्ष 1896 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कोलकाता में किया था. वर्ष 1950 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत राष्ट्रवाद, एकता और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध का प्रतीक बना.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने “वंदे मातरम” के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में राष्ट्रव्यापी उत्सव मनाने का निर्णय लिया है. स्वतंत्रता संग्राम में इस गीत की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भी इस अवसर पर विविध कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू करने का निर्णय लिया है. पूरे राज्य में भारतीय जनता पार्टी सामूहिक गायन के अनेक कार्यक्रम करेगी.

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