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निठारीकांड का ‘नरभक्षी’ सुरेंद्र कोली मौत की सजा पाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने रिहा

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नोएडा, 13 नवम्बर। नोएडा का निठारीकांड याद करते ही आज भी कई लोगों की रूह कांप जाती है. 29 दिसंबर 2006 को कारोबारी मोनिंदर सिंह पंधेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिले थे. और यहीं से एक बड़े भयावह और खौफनाक कांड की सच्चाई का पर्दाफाश हुआ था. निठारी कांड को बच्चों और लड़कियों के साथ दरिंदगी के लिए एक बदनुमा दाग की तरह जाना जाएगा. साल 2005 से 2006 के बीच दर्जनों बच्चे और लड़कियां लापता हुई थीं, जिनमें से ज्यादातर के शव उसी नाले और आसपास के इलाकों से बरामद हुए थे. यह मामला न सिर्फ खौफनाक दरिंदगी और वहशत का था, बल्कि पुलिस की लापरवाही पर भी सवालिया निशान था.

कौन थे मुख्य आरोपी?
इस कांड के केंद्र में थे दो नाम – मोनिंदर सिंह पंधेर और उनका नौकर सुरेंद्र कोली. पंधेर एक अमीर व्यवसायी थे, जिनका डुप्लेक्स घर निठारी के सेक्टर-31 में था. कोली उनके घर में चपरासी का काम करता था. जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया कि कोली ने बच्चों को लालच देकर घर बुलाया, उनके साथ दुष्कर्म किया, उनकी हत्या की और फिर शवों को नाले में फेंक दिया. पंधेर पर भी सहयोग का इल्जाम था. कोली को तो ‘नरभक्षी’ तक कहा गया, क्योंकि कथित तौर पर वह शवों का मांस भी खाता था. लेकिन यह सब गवाहों के बयानों और कोली के कन्फेशन पर टिका था, जो बाद में विवादास्पद साबित हुआ.

16 केस और मौत की सजा
निठारीकांड में कुल 16 से ज्यादा केस दर्ज हुए, लेकिन मुख्य रूप से 13 ट्रायल कोर्ट केस थे. सीबीआई ने जांच संभाली और कोली को 13 मामलों में मौत की सजा सुनाई गई. निचली अदालतों ने 2009-2010 में ये सजाएं दीं. उदाहरण के लिए, रिंपा हलदार नाम की 15 साल की लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में कोली को फांसी की सजा हुई. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ मामलों में सजा बरकरार रखी, लेकिन पंधेर को कई केसों में बरी कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में कई सजाओं को पुष्टि की. कोली 16 साल तक डेथ रो पर रहा, लेकिन दया याचिका में देरी के कारण 2015 में उसकी सजा उम्रकैद में बदल गई.

सजा तय होने के बाद भी सवालों का दौर
मौत की सजा मिलने के बावजूद, मामले में कई खामियां उजागर हुईं. कोली का कन्फेशन जबरदस्ती का बताया गया. जांच में डीएनए सैंपल मिसमैनेजमेंट हुआ, शवों की पहचान पूरी नहीं हो सकी. सीबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि पुलिस ने शुरुआत में लापता लोगों को ‘भागे हुए’ मान लिया था. पीड़ित परिवारों का गुस्सा फूटा. वे कहते थे कि गरीब इलाके के बच्चे गायब हो रहे थे, लेकिन अमीर पंधेर के घर की तलाशी लेट हुई. साल 2011 तक कोली को दोषी मान लिया गया, लेकिन सबूतों की कमजोरी पर बहस जारी रही.

हाईकोर्ट का टर्निंग पॉइंट
साल 2023 में इस केस में नया मोड़ आया. 16 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 मामलों में कोली को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि सबूत ‘संदेह से परे’ नहीं हैं. कोली का कन्फेशन अविश्वसनीय, रिकवरी (जैसे चाकू) अमान्य है. पंधेर को भी दो मामलों में बरी किया गया. हाईकोर्ट ने पुलिस और सीबीआई की ‘लापरवाह जांच’ पर तीखी टिप्पणी की. केवल एक केस रिंपा हलदार वाला बाकी रहा, जहां कोली की उम्रकैद बरकरार थी. सीबीआई और यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया. देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/

सुप्रीम कोर्ट की क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई
अब बचा था आखिरी केस. कोली ने साल 2011 के सुप्रीम कोर्ट फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की. यह आखिरी कानूनी हथियार था. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने 7 अक्टूबर 2025 को सुनवाई की. कोर्ट ने कहा, ‘यह न्याय का मजाक होगा अगर 12 मामलों में बरी होने के बाद एक में सजा रहे.’ सबूतों में वही कमियां – कन्फेशन पर निर्भरता, सेक्शन 27 ऑफ एविडेंस एक्ट के तहत रिकवरी अमान्य. कोर्ट ने रिजर्व्ड वर्डिक्ट दिया.

11 नवंबर 2025 को ऐतिहासिक फैसला
अब सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर 2025 को फैसला सुनाया. कोली को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, ‘शक, चाहे कितना गहरा हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता.’ कोर्ट ने 2011 का फैसला और 2014 की रिव्यू पिटिशन खारिज करने का आदेश रद्द किया. ‘याचिकाकर्ता को बरी किया जाता है, तुरंत रिहा करें,’ यह आदेश था. कोर्ट ने जांच एजेंसियों पर सख्त टिप्पणी की. ‘लापरवाही से असली अपराधी छूट गया.’ अब कोली 19 साल की कैद के बाद आजाद हो गया.

फैसले का आधार – सबूतों की कमजोरी
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सबूतों पर टिका है. 12 मामलों में वही कन्फेशन और रिकवरी अमान्य थी, तो 13वें में क्यों मानें? कोर्ट ने कहा, ‘न्यायपालिका जल्दबाजी नहीं कर सकती.’ कन्फेशन जबरदस्ती का, कोई इंडिपेंडेंट विटनेस नहीं. डीएनए और फॉरेंसिक सबूत नाकाफी थे. हाईकोर्ट ने पहले ही पुलिस की ‘परफंक्शनरी’ जांच को फटकारा था. कोर्ट ने रिंपा अशोक हुर्रा केस के आधार पर क्यूरेटिव को मंजूर किया, क्योंकि यह ‘न्याय के हित’ में था.

पीड़ित परिवारों का दर्द
फैसले से पीड़ित परिवार सदमे में हैं. एक पिता ने कहा, ‘कानून अंधा है, हमारे बच्चे की सजा कौन लेगा?’ निठारी के लोग कहते हैं, सिस्टम फेल हो गया. सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है – क्या कोली निर्दोष? या जांच की भूल? लेकिन कोर्ट ने साफ कहा, ‘भयानक अपराध में भी निर्दोष को सजा नहीं.’ यह फैसला न्याय व्यवस्था की ताकत दिखाता है, लेकिन असली अपराधी की तलाश अधर में लटक गई.

कानूनी सबक
निठारीकांड एक काला अध्याय है, जो पुलिस सुधार की मांग करता है. सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया – सबूत ही राजा है, शक नहीं. कोली की रिहाई से सवाल उठे, लेकिन यह निर्दोष बचाने की जीत भी है. भविष्य में फॉरेंसिक जांच मजबूत हो, ताकि ऐसे कांड न हों. निठारी के घाव भरे नहीं, लेकिन इंसाफ का सफर जारी रहेगा.

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