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भगवान मद्महेश्वर के कपाटआज बंद होंगे

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देहरादून (ऊखीमठ)। मद्महेश्वर, मध्यमहेश्वर या मदमहेश्वर उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में है। यह पंचकेदार मंदिर समूह का द्वितीय केदार है। प्रथम केदार केदारनाथ, तृतीय केदार तुंगनाथ, चौथा केदार रुद्रनाथ और पांचवा केदार कल्पेश्वर माना जाता है। पंचकेदारों में शिव के शरीर के विभिन्न हिस्सों की पूजा की जाती है। मदमहेश्वर चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर बना है। ऊखीमठ से कालीमठ, मनसुना गांव से होते हुए 26 किमी की दूरी तय करके मदमहेश्वर पहुंचा जा सकता है।

मान्यता है कि पांडवों द्वारा महाभारत में अपने ही भाइयों की गोत्र हत्या किये जाने से शिव नाराज थे। वे पांडवों से बचने के लिए हिमालय चले आये। बैल का रूप धारण किये हिमालय में विचरते शिव को जब भीम ने पहचान लिया और उनका रास्ता रोकने की कोशिश की तो गुप्तकाशी में शिव जमीन के भीतर घुस गए। जब भगवान शिव भूमि में समाए तो उनके शरीर के पंच भाग इन पंच केदारों में प्रकट हुए। जहां केदारनाथ में शिव के कूबड़ (पीठ), तुंगनाथ में भुजा, रुद्रनाथ में सिर, मदमहेश्वर में नाभि व कल्पेश्वर में जटा। ये पांचों स्थान पंच केदार के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

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