इंटरनेट का बच्चों के जीवन पर पड़ता दुष्प्रभाव: एक्सक्लूसिव
के.एस. रावत। टी.वी., कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल। संचार के इन आधुनिक साधनों के आविष्कार ने जहां सूचना और ज्ञान का भंडार सबके लिए खोल दिया हैै, वहीं सामाजिक जीवन में इसके दुष्प्रभावों से भी इनकार नहीं किया जा सकता। शायद इसीलिए एप्पल आईफोन से दुनिया को परिचित कराने वाले अमेरिकी आविष्कारक स्टीव जाब्स बच्चों को इन सबसे दूर रखने के हिमायती थे। उनका मानना था कि बच्चों को इन सबकी जरूरत नहीं है। पहले घर-घर टीवी आया तो बच्चों का ज्यादा समय कार्टून नेटवर्क के कार्यक्रम देखने में बीतने लगा। कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल आने के बाद तो ये सब जैसे साथ-साथ चलने लगा। बाजारवाद ने भौतिक जरूरतों की भूख ऐसी जगा कि लोग उसके पीछे भागते नजर आए। लोगों के जीवन में तनाव स्थाई भाव बन गया, जिसका असर सार्वजनिक जीवन में हर तरफ देखा जा सकता है।
आज छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन आ गया है। एंड्रायड फोन आने के बाद तो उसका उपयोग कंप्यूटर की भांति होने लगा है। बच्चों का मनोविज्ञान ही गड़बड़ता जा रहा है। छोटे-छोटे बच्चे अपने शिक्षक के व्यवहार से तंग आकर आत्महत्या जैसे घोर अपराधों को अंजाम देने लगे हैं। टेक्नोलॉजी के इस मॉडर्न युग में रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा आज हर इन्सान के लिए एक और बुनियादी ज़रूरत जो सामने आ रही है वो है ‘इन्टरनेट’। न केवल बड़ों के लिए बल्कि बच्चों के लिए भी इसके बिना एक दिन भी गुज़ारना जैसे किसी भयंकर सपने से कम नहीं है।