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रामनगर अस्पताल के 250 कर्मचारी हुए बेरोजगार, पीपीपी मोड पर चल रहा था अस्पताल

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रामनगर, 16 अप्रैल। नैनीताल के रामनगर के संयुक्त चिकित्सालय में काम कर रहे करीब 250 कर्मचारी अचानक बेरोजगार हो गए हैं. जिसके चलते उन्होंने प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कर्मचारियों ने अस्पताल में उनकी बहाली या उनके स्थायी रोजगार के लिए योजना बनाने की मांग की है.

ये है मामला- दरअसल, वर्ष 2020 में उत्तराखंड सरकार ने रामनगर के इस सरकारी अस्पताल को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर दिया था. ताकि अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाया जा सके. लेकिन बीते चार वर्षों में यह प्रयोग अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका और अस्पताल की व्यवस्था लगातार सवालों के घेरे में रही.

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर अस्पताल कई बार सुर्खियों में रहा. स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों ने समय-समय पर अस्पताल को पुनः सरकारी नियंत्रण में लेने की मांग की. लैंसडाउन के भाजपा विधायक महंत दिलीप सिंह रावत ने भी अस्पताल की खस्ताहाल व्यवस्थाओं पर नाराजगी जताते हुए सरकार से पीपीपी मोड को समाप्त करने की मांग की थी.

1 अप्रैल को सरकार ने अपने अधीन लिया अस्पताल
लगातार विरोध और जनदबाव के चलते सरकार ने आखिरकार 1 अप्रैल 2025 से इस अस्पताल को पीपीपी मोड से हटाकर पुनः सरकारी तंत्र के अधीन ले लिया. हालांकि अब तक स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से सामान्य नहीं हो सकी हैं. पीपीपी संचालकों द्वारा कुछ उपकरण और संसाधन अब भी अस्पताल को हैंडओवर नहीं किए गए हैं. जिससे मरीजों को उपचार में काफी परेशानी हो रही है.

250 कर्मचारी बेरोजगार
इस पूरे बदलाव का सबसे बड़ा असर अस्पताल में कार्यरत लगभग 300 कर्मचारियों पर पड़ा है. जिन्हें पीपीपी मोड से हटते ही काम से निकाल दिया गया. इनमें से करीब 250 लोग अब पूरी तरह बेरोजगार हो चुके हैं. बुधवार को इन कर्मचारियों ने अस्पताल से कुछ ही दूरी पर धरना प्रदर्शन किया. इस दौरान उन्होंने प्रदेश सरकार और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.

बिना सूचना निकालने का आरोप
प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के उन्हें अचानक नौकरी से निकाल दिया. यदि सरकार पहले से कोई सूचना या नोटिस देती तो वे अपने भविष्य को लेकर कोई योजना बना सकते थे. उन्होंने कहा कि जब पहले सरकार ने पीपीपी मोड का कार्यकाल तीन-तीन माह बढ़ाया था तो इस बार भी उन्हें कम से कम तीन माह पूर्व सूचना मिलनी चाहिए थी. कर्मचारियों का यह भी कहना है कि कई लोगों ने बिना डिग्री भी अस्पताल में सेवा दी थी और कोरोना काल में भी जान की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा की थी. आज जब कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं तो उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. प्राइवेट अस्पतालों में भी उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही है.

कर्मचारियों ने रखी मांगें
प्रदर्शनकारियों ने सरकार से अस्पताल को दोबारा पीपीपी मोड पर देने जिससे उनकी नौकरी बहाल हो सके या फिर उनके लिए कोई स्थायी रोजगार योजना बनाने की मांग की है. कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो उग्र आंदोलन के लिए मजबूर होंगे.देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/

रामदत्त संयुक्त चिकित्सालय के सीएमएस डॉ. विनोद टम्टा ने बताया कि इस मामले की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी गई है. उनके निर्देशों के अनुसार ही आगे की कार्रवाई की जाएगी.

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