पत्थर दिल मां के सामने टूटती रहीं नाबालिग मां बनी बेटी की सांसें, अस्पताल बेबस

रुद्रप्रयाग। पत्थर दिल मां के सामने नाबालिग मां बनी बेटी की सांसें उखड़ती रहीं, लेकिन मां दूसरे अस्पताल में बेटी के इलाज को टस से मस नहीं हुई। अस्पताल प्रशासन भी मां की जिद के आगे बेबस था। विगत 23 जुलाई को जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग में नाबालिग व उसके नवजात शिशु की मौत के मामले में सीएमओ ने भी अलग से जांच कराई। जांच में पता चला कि नाबालिग की प्लेटलेट्स 10 हजार से कम हो गयी थी, जिस कारण उसे अधिक रक्तस्राव होने लगा था।
नाबालिग गर्भवती की मां की भूमिका संदिग्ध
जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग प्रशासन ने जांच रिपोर्ट में गर्भवती नाबालिग की मौत के लिए उसकी मां की भूमिका को संदग्ध बताया है। रिपोर्ट के अनुसार बेटी की सांसें जवाब दे रही थीं, लेकिन मां, बेटी को दूसरे अस्पताल ले जाने को राजी नहीं हुई। डाक्टरों के बार-बार आग्रह कहने के बावजूद भी मां जिला अस्पताल में ही इलाज कराने को अड़ी रही।
इंटरमीडिएट की छात्रा थी नाबालिग
नाबालिग लड़की इंटरमीडिएट की छात्रा थी। बताया जा रहा है कि जुलाई माह में वह सिर्फ दो दिन ही स्कूल गई थी। अक्सर उसके अनुपस्थित रहने पर स्कूल प्रबंधन ने उसके बारे में पता किया था। परिजनों का कहना था कि उसकी तबीयत खराब है, इसलिए वह स्कूल नहीं आ पा रही है।
अस्पताल की लापरवाही पर डाला पर्दा
हालांकि इस नाबालिग और उसके शिशु के मौत के मामले में अस्पताल की तरफ से भी घोर लापरवाही बरती गयी है। बच्चा बाथरूम में जन्म लेता है। फिर भी अस्पताल प्रशासन को इस बारे में भनक तक नहीं लग पाती। इस रिपोर्ट में अस्पताल की लापरवाही पर पूरी तरह पर्दा डाल दिया गया है। अस्पताल प्रशासन लड़की की मां की जिद के आगे क्यों झुका? इस सवाल का जवाब रिपोर्ट में नहीं है।
नाबालिग लड़की को रेफर कर दिया गया था। दो बार एंबुलेंस भी बुलाई गयी, लेकन उसकी मां ने लिखित पत्र देकर कहा कि बेटी का इलाज यहीं होगा। ऐसे हालात में उसे किसके सहारा छोड़ा जा सकता था। अस्पताल से जो बेहतर इलाज हो सकता था वह उसे देने का प्रयास किया गया।
डा. संजीव सिंह पाल, मुख्य चिकित्साधीक्षक, जिला चिकित्सालय, रुद्रप्रयाग