सुप्रीम कोर्ट ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ नीति को सही ठहराया
नई दिल्ली। सेवानिवृत्त सैनिकों के वन रैंक वन पेंशन की नीति को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें कोई संवैधानिक कमी महसूस नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार 1 जुलाई 2019 से पेंशन की समीक्षा कर 3 महीने में बकाया का भुगतान करे। विदित हो कि याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन ने सरकार के 2015 के फैसले को चुनौती दी थी। इसमें उनकी दलील थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि यह एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है।
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चंद्रचूड, सूर्यकांत और विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि वन रैंक वन पेंशन पर केंद्र के फैसले में कोई दोष नहीं है और सरकार के नीतिगत मामलों में हम दखल नहीं देना चाहते हैं। बीते महीने याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने कहा था कि जो भी फैसला लिया जाएगा वह वैचारिक आधार पर होगा न कि आंकड़ों पर। पीठ ने कहा था कि योजना में जो गुलाबी तस्वीर पेश की गई थी, वास्तविकता उससे कहीं अलग थी। कोर्ट ने कहा था कि यह गौर करना होगा की ओआरओपी की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है, यह एक नीतिगत फैसला है।
2011 में जारी हुआ था आदेश
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 7 नवंबर 2011 को एक आदेश जारी कर वन रैंक वनपेंशन योजना लागू करने का फैसला लिया था, लेकिन इसे 2015 से पहले लागू नहीं किया जा सका। इस योजना के दायरे में 30 जून 2014 तक सेवानिवृत्त हुए सैन्यबल कर्मी आते हैं।
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