
कालसी (देहरादून)। घरों के साथ लोहारी गांव की सुनहरी यादें अब इतिहास के पन्नों पर सिमट जाएंगे। लखवाड़-व्यासी जल विद्यत परियोजना की झील का जलस्तर बढ़ते ही लोहारी गांव यादों को समेटे जलमग्न हो गया। झील की गहराइयों में लोहार गांव की सुनहरी यादें, संस्कृति और खेत खलिहाल इतिहास के पन्नों में सिमट गये। अपने पैतृक गांव को डूबते देख गांव वालों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। ऊंचे स्थानों पर बैठे ग्रामीण दिनभर भीगी पलकों से अपने पैतृक गांव की जलसमाधि देखते रहे। उनकी सुनहरी यादें बस अब यादें ही रह जाएंगी। 48 घंटे का नोटिस मिलने के बाद सभी गांववालों को गांव खाली करना पड़ा। इस परियोजना से 330 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होना है।
उपजिलाधिकारी कालसी सौरभ असवाल का कहना है कि प्रशासन की ओर से बांध विस्थापितों के लिए रहने की पूरी व्यवस्था की गई है, लेकिन ग्रामीण हैं कि उन्हें अपने पैतृक गांव सुनहरी यादें डूबते देख उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। विस्थापितों का आरोप था कि प्रशासन ने बगैर पुनर्वास उन्हें गांव छोड़ने को मजबूर कर दिया।
क्या है लखवाड़-व्यासी परियोजना
120 मेगावाट की लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए आवश्यक सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने के बाद वर्ष 2014 में परियोजना पर दोबारा कार्य शुरू हुआ। दिसंबर 2021 में परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण कर उसकी कमिशनिंग की जानी थी, लेकिन तमाम जटिलताओं के चलते अधिकार देने में देरी हुई। 1777.30 करोड़ लागत वाली परियोजना के डूब क्षेत्र में सिर्फ लोहारी गांव ही आ रहा था। गांव के 66 विस्थापितों को चिन्हित कर मुआवजा मिलचुका है। अधिशासी निदेशक राजीव अग्रवाल के अनुसार यमुना पर बनी परियोजना में हिमाच्छादित क्षेत्र को मिलाकर जलग्रहण क्षेत्र 2100 वर्ग किमी और हिमाच्छादित जलग्रहण क्षेत्र 60 वर्ग किमी. है।