
देहरादून। पितरों का आवाहन का समय आज से शुरू हो गया है, जो 16 दिन तक रहेगा। आज से 16 दिन तक यमराज की आज्ञा से हमारे वितृदेव पृथ्वी लोक में विचरण करते रहेंगे। 25 सितम्बर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ ही पितृ विसर्जन हो जायेगा। ब्रह्मपुराण के अनुसार मनुष्य को देवताओं की पूजा करने से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। इसीलिए
श्राद्ध के तीन अंग होते हैं
श्राद्ध के तीन अंग होते हैं, जिनमें पहला पिंडदान, दूसरा तर्पण और तीसरा ब्राह्मण भोजन हाता है। इन तीनों क्रियाओं को करने के बाद श्राद्ध की पूर्ति होती है, जिससे हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। तर्पण एवं पिंडदान करते समय पिता कुल के साथ माता कुल की भी तीन पीढ़ियों को जल अंजलि एवं पिंडदान करना चाहिए, तभी श्राद्ध कर्म की पूर्णता मानी जाती है।
पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार पितरों की तीन पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में निवास करती है, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच माना जाता है। यह क्षेत्र मृत्यु के देवता यम द्वारा चलाया जाता है, जो एक मरते हुए व्यक्ति की आत्मा को पृथ्वीलोक से पितृलोक तक ले जाता है। पितृलोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध दिया जाता है, जिसमें यम की अहम भूमिका होती है।
श्राद्ध कर्म में तर्पण के लिए लोहे का बर्तन निषेध माना जाता है। इसकी जगह मिट्टी का पात्र प्रयोग किया जा सकता है। जबकि धातु के पात्र जैसे चांदी, तांबा, पीतल आदि पहुत पवित्र माने जाते हैं। ब्राह्मण को दिए जाने वाले भोजन में उड़द, कद्दू, लौकी, मूली, गाजर आदि चीजें निषेध मानी जाती हैं। https://sarthakpahal.com/
श्राद्ध से जुड़ी एक पौराणिक कथा
कहा जाता है कि जब महाभारत में दानवीर कर्ण की मृत्यु हुई तो उसकी आत्मा स्वर्ग जाती है, जहां उसे भोजन में सोना और रत्न चढ़ाए गये। जब कर्ण ने इंद्र से भोजन के बजाय सोना चढ़ाने के बारे में पूछा तो इंद्र ने कहा कि उसने जीवनभर सोना दान किया है, श्राद्ध में अपने पूर्वजों को कभी भोजन नहीं दिया। इस पर कर्ण बोलता है कि मुझे अपने पूर्वजों का ज्ञान नहीं था। तब इंद्र ने कर्ण को 15 दिन के लिए पृथ्वीलोक में जाकर श्राद्ध करने और अपने पूर्वजों को भोजन और पानी दान करने की सलाह दी। तभी से इस काल को पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है।