
देहरादून। स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर का उत्तराखंड से गहरा नाता था। बात 1987-88 की है। गढ़वाली सिनेमा अभी घुटनों के बल सरकना ही शुरू हुआ था। महज 4 साल पहले ‘जग्वाल’ के साथ इसका जन्म हुआ था। मुंबई में रह रहे उत्तराखंडी समाज के पास उत्साह से लवरेज था। ऐसे में लता मंगेशकर की आवाज किसी गढ़वाली फिल्म को मिले, यह कल्पना से परे था। 1990 में गढ़वाली फिल्म रैबार में उनका ‘मन भरमैगे मेरी सुध-बुध ख्वे गे’ विशेष रूप से याद आएगा। उत्तराखंड के संगीत को लता मंगेशकर ने यह बेशकीमती तोहफा दिया। फिजा में गूंज उठी मीठी पहाड़ी आवाज, ‘मन भरमे गे मेरू, सुध-बुध ख्वैगे…सुणि तेरी बांसुरी सुर…।’ आज जब यह गीत सुर साम्राज्ञी की आवाज में कहीं भी सुनाई देता है, तो सुनने वाला यकीनन सुध-बुध खो देता है। उसका मन पहुंच जाता है सुदूर पहाड़ों में.. . हरे-भरे बुग्यालों में…नदियों और झरनों के आसपास।
ऐसे रिकॉर्ड हुआ गीत
‘मन भरमे गे…’ के गीतकार देवी प्रसाद सेमवाल अब उम्रदराज हो चुके हैं। 1986 में आई सुपरहिट ‘घरज्वैं’ समेत कई गढ़वाली फिल्मों की पटकथा व संवाद उन्होंने लिखे। अनेक फिल्मों के लिए गीत लिखे। वह बताते हैं कि फिल्म रैबार पर काम हो रहा था। गीतों की रिकॉर्डिंग के लिए ताड़देव स्थित एक स्टूडियो को बुक किया गया। एक दिन पता चला कि लता मंगेशकर भी वहां अक्सर आती हैं। । बकौल सेमवाल, फिर भी उन्होंने और निर्देशक सोनू पंवार ने सकुचाते हुए हिम्मत करके स्टूडियो स्वामी से बात की। उनसे आग्रह किया कि किसी तरह लताजी को रैबार में कोई गीत गाने के लिए मना लें। निर्देशक सोनू पंवार की गढ़वाली फिल्म रैबार में ‘मन भरमेगे’ गीत को लता मंगेशकर ने चार घंटे का समय निकाला और एक-एक शब्द का अर्थ समझ कर गाया था।
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