
हल्द्वानी। बर्खास्त विधानसभा कर्मचारियों के मामले में सरकार को हाईकोर्ट को पटखनी दी है। 200 से अधिक कर्मचारियों को विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने पूर्व प्रमुख सचिव डीके कोटिया की अध्यक्षता में बनाई गयी समिति की सिफारिशों के आधार पर 27, 28 और 29 सितम्बर को बर्खास्त कर दिया था। ये सारे कर्मचारी तदर्थ थे।
कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
बीते दिवस न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने इन कर्मचारियों को सुनवाई का मौका नहीं देने पर नाराजगी जताई थी और विधानसभा से इस बिंदु पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ 55 से अधिक कर्मचारियों की याचिका दायर की गयी थी। याचिकाकर्ताओं में बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट व कुलदीप सिंह सहित 55 अन्य मुख्य थे।
कर्मचारियों की बर्खास्तगी लोकहित में नहीं
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि विधानसभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं, मगर बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर हटाया गया, कहीं इसका उल्लेख नहीं किया और न हीं उन्हें सुना गया, जबकि उन्होंने सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की तरह ही काम किया। कोर्ट ने कहा कि एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना विधि के खिलाफ है। विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैकडोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच भी हुई थी, जिनको स्थाई किया जा चुका है। https://sarthakpahal.com/
जनता का ध्यान हटाने को खेला गया खेल
वैसे देखा जाये तो ये सिर्फ जनता को बरगलाने का एक नाटक था। ये तो तय था कि इतने सारे कर्मचारियों को बर्खास्त करने से कुछ नहीं होने वाला। जनता में उस समय सरकार के खिलाफ पेपर लीक का जो गुबार उठ रहा था, उसे किसी तरह से दबाना सरकार के लिए चुनौती थी। ये सब मिलीभगत और सुनियोजित तरीके से खेला गया एक षडयंत्र मात्र था। जिसका नतीजा अब सबके सामने है।
सेवा विस्तार भी नहीं दिया गया
याचिका में कहा गया कि 2014 तक हुई तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार साल में ही स्थाई कर दिया गया था, किंतु उन्हें छह साल बाद भी स्थाई नहीं किया गया और अब उन्हें हटा दिया गया। जबकि नियमानुसार छह माह की नियमित सेवा देने के बाद उन्हें नियमित किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने कर्मचारियों के हित में आदेश दिया और सरकार की बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगा दी।