देहरादून। प्रकाश और समृद्धि का महापर्व दीपावली की शुरुआत धनतेरस से ही हो जाती है। ये दोनों महापर्व जीवन से अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाते हैं। इन पर्वों पर देवी-देवताओं की पूजा विधिवत और श्रद्धाभाव से करने पर घर में सुख, शांति, वैभव और संपन्नता आती है।
कैसे हुई धन्वंतरि की उत्पत्ति
कहते हैं कि जब समुद्र मंथन की बात आई तो उस समय मंदराचल पर्वत को मथानी और नागों के राजा वासुकी को रस्सी बनाया गया। वासुकी के मुख की ओर दैत्य और पूंछ की ओर देवताओं को कर समुद्र मंथन शुरू हुआ। समुद्र मंथन से चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई। इनमें शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि और अमावस्या को मां लक्ष्मी का पादुर्भाव हुआ। चौदहवें रत्न के रूप में भगवान धन्वंतरि हाथों में कमल लिए हुए प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवताओं का वैद्य और औषधियों का स्वामी नियुक्त किया। भगवान विष्णु के अंशावतार भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य पर्व प्रदोष व्यापिनी तिथि में मनाने का विधान है।
कैसे करें धन्वंतरि की पूजा
धनतेरस के दिन प्रदोषकाल में धन्वंतरी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें। पूजा के दौरान ‘ऊं नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नम:’ मंत्र का उच्चारण करें। आयुर्वेद के अनुसार भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर एवं दीर्घायु से ही संभव है। शास्त्र करते हैं कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ यानि धर्म का साधन निरोगी शरीर है। ऐसे में आयोग्यरूपी धन के लिए भगवान धन्वंतरि की पूजा-अराधना की जाती है। https://www.facebook.com/Sarthak_Pahal-101257265694407/
धनतेरस में पूजा का शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 22 अक्टूबर शनिवार को शाम 6 बजकर 2 मिनट पर होगी और 23 अक्टूबर रविवार को शाम 6 बजकर 3 मिनट पर समाप्त होगी। धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त 23 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 44 मिनट से 6 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल का समय 23 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 44 मिनट से रात 8 बजकर 16 मनट तक रहेगा।