केएस रावत। रोशनी का त्योहार दीपावली आज भी उसी परंपरागत रूप से मनाया जाता है, जैसे पहले मनाया जाता था। फर्क सिर्फ इतना आ गया है कि पहले मिट्टी के दीयों से घर रोशन हुआ करता था, और अब उनकी जगह बिजली की चकाचौंध लड़ियों ने ले ली है। लेकिन फिर भी अंधेरे को चीरते इन खूबसूरत मिट्टी के दीयों के बगैर दीपावली का त्योहार अधूरा सा अधूरा लगता है। आज भी लोगों के घरों में दीपावली पर मिट्टी की खुशबू और दीये की टिमटिमाहट नजर आ ही जायेगी।
सोशल मीडिया पर एक वीडियो जबर्दस्त वायरल हो रहा है, जिससे ये आभास होता है कि आधुनिक बिजली के झालरों ने इन मिट्टी के दीयों का बाजार कितना झकझोर दिया है। एक कुम्हार जो दिन-रात मेहनत करके दीया तैयार करता है, इस उम्मीद में कि इस बार दीपावली पर खूब खुशियां मिलेंगी, लेकिन उनकी खुशियों को इन बिजली के झालरों की नजर लग गयी है। वीडियो में देखिये दीये बेचने वाली की मार्मिक बातें।
शहर से लेकर दूर गांवों तक मिट्टी के दीयों का बाजार कभी खूब जगमगाता था, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति की मार से इस धंधे में कुम्हारों को बहुत मार पड़ी है। फिर भी इनता हौसला नहीं टूटा है। मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि भले ही बाजारों में आधुनिक साजो-सामान, तरह-तरह की झालरें आ गयी हों, लेकिन आज भी मिट्टी के दीये और कलश दीपावली पर सबसे ज्यादा बिकते हैं।
बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते कुम्हारों ने भी दीयों के पैटर्न और स्टाइल में जबर्दस्त परिवर्तन किया है। जहां अधिकांश चौराहों पर दीवाली के बाजार सजे हैं, वहीं अलग-अलग प्रकार के मिट्टी के दीये, रंगोली, खिलौने समेत तमाम सजावटी सामान बाजारों में उपलब्ध है। https://sarthakpahal.com/
पारंपरिक दीयों के साथ ही कई तरह के सजावटी दीये भी बाजारों में उपलब्ध हैं। दीये 150 रुपये प्रति सैकड़ा, डिजाइनर सिंगल दीया चार रुपये से दस रुपये तक, बड़े दीये दस से पंद्रह रुपये तक, मैजिक दीया 50 रुपये, स्टैंड दीया 60 रुपये, ढक्कन वाले दीये 80 रुपये पीस तक बाजारों में उपलब्ध हैं। बाजार में इस समय टेराकोटा के जादुई दीये भी बिक रहे हैं, जो लगातार दस घंटे तक जलते हैं।