देहरादून। पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित सैन्य छावनी लैंसडाउन का नाम फिर से ‘कालौं का डांडा’ अर्थात काले बादलों से घिरा पहाड़ हो जायेगा। 132 साल पुराने लैंसडाउन का नाम बदलने की तैयारी चल रही है। लैंसडाउन पहाड़ी क्षेत्र के हरे-भरे प्राकृतिक वातावरण में स्थित है। इसका मूल नाम कालूडांडा था, जिसे गढ़वाली भाषा में ‘काले पहाड़’ कहा जाता था। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1706 मीटर है। इसको अंग्रेजों ने रंगरूट के प्रशिक्षण के लिए विकसित किया था।
गढ़वाल राइफल्स का गढ़ है लैंसडाउन
यह पूरा क्षेत्र गढ़वाल राइफल्स के अधी है। यहां गढ़वाल राइफल्स वार मेमोरियल और रेजीमेंट म्यूजियम भी है, जिसे दरवान सिंह संग्रहालय भी कहा जाता है। इस संग्रहालय में दरवान सिंह नेगी और गबर सिंह नेगी को दिये गये विक्टोरिया क्रास सहित गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों द्वारा जीते गये पदक भी रखे गये हैं। यह क्षेत्र स्वतंत्रता आंदोलन की कई गतिविधियों का साक्षी भी रहा है। रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड क्वार्टर ने सब एरिया उत्तराखंड से ब्रिटशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे नामों को बदलने के लिए प्रदेश सरकारों से इस बारे में सुझाव देने को कहा गया है। लैंसडाउन छावनी ने इसका नाम कालौं का डांडा रखने का प्रस्ताव भेजा है। 132 साल पहले तक इसे कालौं का डांडा के नाम से जाना जाता था। स्थानीय लोग इसका पुराना नाम रखने की मांग कई वर्षों से करते आ रहे हैं। रक्षा मंत्रालय को भी इस संबंध में कई पत्र भेजे जा चुके हैं।
वायसराय लैंसडाउन के नाम पर बदला गया था नाम
1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई थी। पांच मई 1887 को ले. कर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन चार नवम्बर 1887 को लैंसडाउन पहुंची। उस समय लैंसडाउन को कालौं का डांडा कहते थे। 21 सितम्बर 1980 तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडाउन के नाम पर इसका नाम लैंसडाउन रख दिया गया था। https://sarthakpahal.com/
पिछले काफी समय से स्थानीय लोग नाम बदलने की मांग करते रहे हैं। देश, काल और परिस्थितियों को देखकर ऐसे प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है।
अजय भट्ट, केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री