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अब नए नाम से जाना जाएगा लैंसडौन, कैंट बोर्ड ने प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा

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लैंसडौन (कोटद्वार)। छावनी परिषद ने वर्षों पुराने छावनी नगर का नाम लैंसडौन से बदलकर जसवंतगढ़ करने का सुझाव रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defense) को भेजा है। रक्षा मंत्रालय ने पूर्व में छावनी बोर्ड से नाम बदलने संबंधी सुझाव मांगा था। अब तीन दिन पहले हुई छावनी बोर्ड की बैठक में लैंसडौन का नाम वीर शहीद जसवंत सिंह के नाम से जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

छावनी बोर्ड की कार्यालय अधीक्षक विनीता जखमोला ने इसकी पुष्टि की है। बताया कि छावनी बोर्ड के अध्यक्ष ब्रिगेडियर विजय मोहन चौधरी की अध्यक्षता में तीन दिन पहले हुई बैठक में लैंसडौन नगर का नाम हीरो ऑफ द नेफा महावीर चक्र विजेता शहीद राइफलमैन बाबा जसवंत सिंह रावत के नाम पर जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव को कैंट के प्रमुख संपदा अधिकारी मध्य कमान लखनऊ के माध्यम से रक्षा मंत्रालय को भेजा है। https://sarthakpahal.com/

आम जनता लैंसडौन का नाम बदलने के विरोध में
प्रस्ताव में यह भी उल्लेख है कि आम जनता लैंसडौन नगर का नाम बदलने का विरोध कर रही है। यदि इस नगर का नाम बदलना है तो भारत-चीन युद्ध के महानायक वीर जसवंत सिंह के नाम पर जसवंतगढ़ किया जाना तर्कसंगत होगा। बोर्ड बैठक में बोर्ड सचिव शिल्पा ग्वाल, बोर्ड के मनोनीत सदस्य अजेंदर रावत आदि शामिल रहे।

कौन थे बाबा जसवंत सिंह रावत
पौड़ी जिले के बीरोंखाल ब्लॉक के दुनाव ग्राम पंचायत के बाड़ियूं गांव में 19 अगस्त, 1941 को जन्मे जसवंत सिंह रावत गढ़वाल राइफल्स (garhwal rifles) की चौथी बटालियन में सेवारत थे। उनके पिता गुमान सिंह रावत और माता लीला देवी थीं। 1962 का भारत-चीन युद्ध के समय जसवंत सिंह रावत सेला टॉप के पास की सड़क के मोड़ पर तैनात थे। वे चीनी मीडियम मशीन को खींचते हुए वह भारतीय चौकी पर ले आए और उसका मुंह चीनी सैनिकों की तरफ मोड़कर उनको तहस-नहस कर दिया। 72 घंटे तक चीनी सेना को रोककर अंत में 17 नवंबर, 1962 को वह वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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