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महारैली में दून की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब, हजारों लोगों की जुबान पर एक ही मांग

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देहरादून, 25 दिसम्बर। उत्तराखंड में मूल निवास कानून लागू करने और इसकी कट ऑफ डेट 26 जनवरी 1950 घोषित किए जाने और प्रदेश में सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर देहरादून में आज उत्तराखंड मूल निवास स्वाभिमान महारैली का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें हजारों में संख्या में जुटी भीड़ ने मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून की मांग कीष रैली को लेकर पिछले काफी दिनों से सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जागरूक किया जा रहा था।

महारैली में बड़ी संख्या में युवा और तमाम सामाजिक और राजनीतिक संगठन शामिल होने के लिए प्रदेश भर से पहुंचे हैं। भू-कानून की मांग को लेकर हजारों लोग परेड मैदान में एकत्रित हुए और यहां सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी की। मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि यह उत्तराखंड की जनता की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई है। सरकार की ओर से विभिन्न माध्यमों से संघर्ष समिति से जुड़े सदस्यों से संपर्क कर रैली का टालने का अनुरोध किया गया था।

‘एक जुट एक मुट ह्वे जावा, जागी जा वा’ गीत के साथ नेगी दा ने रैली के लिए भरी हुंकार


उधर गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने भी रैली को सफल बनाने के लिए दूसरे छोर से प्रयास की शुरुआत की। नरेंद्र सिंह नेगी ने बदरीनाथ के द्वार गरुड़ गंगा से कई लोक गायकों के साथ रैली की शुरुआत की। उन्होंने सबसे पहले तो इस महारैली को सफल बनाने के लिए उत्तराखंड की जनता को शुभकामनाएं दी और फिर एक गीत के जरिए उत्तराखंड की जनता को जगाने का प्रयास किया।

आंदोलन में शामिल तमाम लोगों से बात की और इस दौरान उनके मन की बात जानने की कोशिश की। लोग यह कहते हुए सुनाई दे रहे थे कि राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ने के बाद राज्य तो मिल गया लेकिन नए राज्य की कल्पना जिस मकसद के साथ की गई थी, उसके लिए एक बार फिर आंदोलन करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों को रोजगार से वंचित रखकर दूसरे प्रदेशों के लोग उत्तराखंड के युवाओं की नौकरी पर कब्जा कर रहे हैं।

किन्नरों ने भी दिया समर्थन, भू-कानून और मूल निवास को बताया जरूरी
परेड ग्राउंड से जब रैली चली तो किन्नरों के इस दल ने भी रैली में प्रतिभाग किया. इनका कहना था कि उत्तराखंड में मूल होने की लड़ाई बेहद जरूरी है और आज उत्तराखंड के बच्चों को ही उत्तराखंड के हक हकूकों से बाहर किया जा रहा है। किन्नरों ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ अपना अस्तित्व खो रहे हैं। यहां की जरूरतों को नजर अंदाज किया जा रहा है। इन तमाम बातों के बीच जरूरी है कि राज्य में एक कठोर भू-कानून लाया जाए, ताकि उत्तराखंड के पहाड़ को बचाया जा सके। https://sarthakpahal.com/

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