पथराई आंखों से 38 साल किया पति का इंतजार, पता था जरूर लौटेंगे

हल्द्वानी। पथराई आंखों से 38 साल किया पति का इंतजार, विश्वास था कि अंतिम दर्शन जरूर होंगे। शहीद का पार्थव शरीर 38 साल बाद जब घर पहुंचा तो परिजनों की आंखों में फिर से वही पुराना दर्द फिर उतर आया। स्थानीय लोगों ने शहीद को सम्मान और श्रद्धांजलि देने के लिए पूरी गली को तिरंगामय बना दिया। अंतिम विदाई देने के लिए फूलों से सजी गाड़ी तैयार है।
मंगलवार को मेयर जोगेंद्र सिंह रौतेला भी शहीद के घर पहुंचे और परिजनों को ढांढस बंधाया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शहीद के घर पहुंच गये हैं। सियाचिन में 38 साल पहले शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर मंगलवार को लेह-लद्दाख में मौसम खराब होने की वजह से नहीं पहुंच पाया था। बीते 14 अगस्त को उनके परिजनों को पार्थिव शरीर मिलने की सूचना दी गयी थी।
पति की खबर सुनकर रो पड़ी थी पत्नी
जब पत्नी को पति के पार्थिव शरीर की खबर मिली तो वो रो पड़ीं। बोली अाप तो जल्दी आना का वादा कर गये थे, 38 साल लगा दिये। उनका कहना था कि पार्थिव शरीर को नहीं देख पाना का दुख हमेशा के लिए था, लेकिन एक बात शरीर में रहती थी कि कभी न कभी उनके पार्थिव शरीर को देखने का अवसर मिलेगा। शांति देवी ने बताया कि दोनों बेटियों को लेकर वह हल्द्वानी आ गयी थीं। अब दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है। जब वो शहीद हुए थे, तब उनकी उम्र 28 साल थी।
बेटियां उस समय बहुत छोटी थीं
बेटियों के पास पिता से जुड़ी यादें याद नहीं हैं, क्योंकि दोनों ही उस समय बहुत छोटी थीं। उस समय बड़ी बेटी साढ़े चार साल और छोटी डेढ़ साल की थी। शांति देवी ने बताया कि जब जनवरी 1984 में वह अंतिम बार घर आए थे तो वादा कर गये थे कि इस बार जल्दी आऊंगा। हालांकि उन्होंने परिवार के साथ किये वादे की जगह देश के साथ किए वादे को ज्यादा तरजीह दी।