नई दिल्ली,17 सितम्बर। उच्चतम न्यायालय ने समूचे देशभर में प्राधिकारियों को उसकी इजाजत के बिना आपराधिक मामलों में आरोपियों की संपत्ति को ध्वस्त नहीं करने का निर्देश देते हुए मंगलवार को कहा कि अगर अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी मामला है तो यह हमारे संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है। बुलडोजर एक्शन के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अब एक अक्टूबर को अगली सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई के महिमा मंडन पर भी सवाल खड़ा किया। कोर्ट ने कहा यह रुकना चाहिए।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने स्पष्ट किया कि उसका आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों आदि पर बने अनधिकृत ढांचों पर लागू नहीं होगा। पीठ ने कहा, “यदि अवैध ध्वस्तीकरण का एक भी उदाहरण है…तो यह हमारे संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है।” शीर्ष अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें आरोप लगाया गया था कि कई राज्यों में आपराधिक मामलों में आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है।
12 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बुलडोजर एक्शन कानूनों पर बुलडोजर
सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितम्बर को भी कहा था कि बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है। मामला जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की बैंच में था। दरअसल, गुजरात में नगरपालिका की तरफ से एक परिवार को बुलडोजर एक्शन की धमकी दी गई थी। याचिका लगाने वाला खेड़ा जिले के कठलाल में एक जमीन का सह-मालिक है।
2 सितंबर को कोर्ट ने कहा था- अतिक्रमण को संरक्षण नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 2 सितम्बर को सुनवाई के दौरान कहा था कि भले ही कोई दोषी क्यों न हो, फिर भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। हालांकि बैंच ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह सार्वजनिक सड़कों पर किसी भी तरह अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा। लेकिन, इस मामले से जुड़ी पार्टियां सुझाव दें। हम पूरे देशभर के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं।
अवैध निर्माण पर जारी रहेगा एक्शन
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगली सुनवाई तक हमारी अनुमति से ही एक्शन लें। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि देशभर में सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइन पर किए गए अवैध निर्माण पर यह निर्देश लागू नहीं होगा।
सरकार बोली- संवैधानिक संस्थाओं के हाथ न बांधें
अदालत ने कहा कि इस ऑर्डर में सड़कों, फुटपाथों, रेल लाइंस के अवैध अतिक्रमण नहीं शामिल हैं। केंद्र ने इस ऑर्डर पर सवाल उठाया। सरकार की पैरवी करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते। इस पर जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बैंच ने कहा- अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी तो आसमान नहीं फट पड़ेगा।