नई दिल्ली, 23 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुझाव दिया कि संसद को ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ से बदलने के लिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम में संशोधन लाना चाहिए. यह भी कहा कि पर्सनल डिवाइस में चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेट रखना पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत अपराध माना जाएगा.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द के स्थान पर ‘बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ शब्द का इस्तेमाल करना, ऐसे अपराधों की वास्तविकता को दर्शाने के लिए आवश्यक है. बेंच की ओर से फैसला सुनाते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा, ‘हमने केंद्र से यह भी अनुरोध किया है कि इस बीच वह परिभाषा में इस संशोधन को लाने के लिए अध्यादेश जारी करने पर विचार कर सकता है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द का इस्तेमाल न करें, बल्कि बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री कहें’.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि वे किसी भी न्यायिक आदेश में ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का प्रयोग न करें. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने सुप्रीम कोर्ट में कई अन्य सुझाव भी दिए हैं. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हाईकोर्ट ने विवादित फैसला सुनाते हुए गंभीर गलती की है.’
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत में एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही चलाने का निर्देश दिया. उसे हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आया है. इसमें कहा गया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना पोक्सो अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं है.
जनवरी 2024 में मद्रास हाईकोर्ट ने 28 वर्षीय व्यक्ति एस हरीश के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज कर दिया था. उस पर अभियोजन पक्ष ने बच्चों से संबंधित कुछ अश्लील सामग्री अपने मोबाइल फोन पर डाउनलोड करने और देखने का आरोप लगाया था. हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के मामलों में आरोपी हरीश को मुक्त कर दिया था.