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संघर्ष और रोमांच से भरपूर खेल गिंदी कौथिग में उदयपुर ने फिर अजमीर पट्टी को पटका, video

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के एस रावत। अजमीर-उदयपुर गेंद मेला एवं विकास समिति थलनदी की ओर से आयोजित गेंद मेले में मकर संक्रांति पर होने वाला गेंद मेला (गिंदी कौथिग) का अलग ही महत्व है। गढ़वाल में यह मेला थलनदी, डाडामंडी, देवीखेत, दालमीखेत, मवाकोट, सांगुड़ा बिलखेत आदि कई स्थानों पर होता है, लेकिन थलनदी और डाडामंडी का गेंद मेला सबसे प्रसिद्ध है। थलनदी और डाडामंडी के गेंद मेलों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। ये ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मेला पिछले 150 सालों से आयोजित हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने कार्यकाल के दौरान थल नदी मेले को राजकीय मेला घोषित किया था।

अनोखा खेल है थलनदी का गिंदी कौथिग
ये रोमांच मल्ल युद्ध की तरह दो पट्टी के लोगों के बीच बीच खेला जाता है। इस खेल का न तो कोई नियम है और न ही खिलाड़ियों की संख्या ही निर्धारित है। मेले का आकर्षण एक चमड़े की गेंद (वजन करीब 20 किलो) होती है, जिसमें कड़े लगे होते हैं। यह खेल खुले खेतों में खेला जाता है। दोनों पट्टियों (इलाके) के लोग निर्धारित स्थान पर ढोल-दमाऊ और नगाड़े बजाते हुए अपने-अपने क्षेत्र के ध्वज लेकर एकत्र होकर अपने सहयोगियों का उत्साह बढ़ाते रहते हैं। थलनदी में जहां अजमीर और उदयपुर पट्टियों के बीच गेंद खेली जाती है, वहीं डाडामंडी में लंगूर और भटपुड़ी पट्टियों के बीच गेंद के लिए खींचमतान होती है। इसी तरह कटघर में ढांगू उदयपुर के बीच तथी मवाकोट में सुखरो व मोटाढांक पट्टी के बीच गिंद्दी के रोमांचक मुकाबला देखने को मिलता है।

 

लगातार तीसरी बार उदयपुर के नाम रहा खिताब
पिछले साल की तरह इस साल भी अजमीर पट्टी के जवानों को को हार मुंह देखना पड़ा। दोपहर 2.44 के बाद गेंद लाई गयी और फिर शुरू हुए इस गिंद्दी के लिए गुत्थमगुत्था में उदयपुर पट्टी के नौजवानों ने एक बार फिर अपना दबदबा कायम रखा। पूरे मैच में उदयपुर के युवा हावी रहे। हालांकि कुछ समय लगा कि अजमीर पट्टी इस बार कुछ नया करने वाली है, लेकिन उदयपुर के जवानों ने कड़े संघर्ष के बाद उन्हें हार का सामना करना पड़ा। गिंद्दी का संघर्ष दोपहर 3 बजे से शुरू होकर रात 7.30 से लेकर 8 बजे जाकर थमा, जब उदयपुर के कब्जे में गेंद आ गयी। नवयुवकों ने दिनभर की थकान को डांस कर खुशियों में बदल दिया। नवयुवकों का उत्साह बढ़ाने के लिए शुभम, अंकित, सौरभ, सुधीर, सागर, राजा, संतोष, मनीष , सतेंद्र, जयपाल आदि लोगों का सहयोग रहा। इस मेले में देश से नहीं बल्कि विदेशियों ने भी जमकर लुत्फ उठाया।

महाभारत काल से जुड़ा है मेले का इतिहास
थलनदी गेंद मेले का संबंध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय महाबगढ़ी में व्यतीत किया था। इसी दौरान कौरव सेना उन्हें ढूंढते हुए यहां पहुंच गई और पांडवों और कौरवों में मल्लयुद्ध हुआ। यह मेला उसी घटना की याद में मनाया जाता है। वहीं, कुछ लोगों की मान्यता है कि यमकेश्वर ब्लाक के अजमीर पट्टी के नाली गांव के जमींदार की गिदोरी नामक लड़की का विवाह उदयपुर पट्टी के कस्याली गांव में हुआ था। पारिवारिक विवाद होने पर गिदोरी घर छोड़कर थलनदी आ गई। नाली गांव के लोग गिदोरी को मायके ले जाने लगे, तो कस्याली गांव के लोग उसे वापस ससुराल ले जाने का प्रयास करने लगे। इस संघर्ष में गिदोरी की मौत हो गई। तब से थलनदी में दोनों पट्टियों में गेंद के लिए संघर्ष होता है।देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/

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