
देहरादून, 5 मई। उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय समर्थ पोर्टल के माध्यम से जो काम बिना शुल्क के कर सकता था, उसे करने में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए. हैरत की बात यह है कि जिस निजी कंपनी को सॉफ्टवेयर विकास का काम दिया गया, उसने भी इसमें खानापूर्ति की. बावजूद इसके कंपनी को करोड़ों का भुगतान होता रहा. ये बात तकनीकी शिक्षा विभाग खुद मान रहा है. मामला सामने आने के बाद इसपर पांच सदस्यीय तकनीकी जांच कमेटी गठित कर दी गई है.
छात्रों को नई दिशा देने की जिम्मेदारी संभालता है UTU
तकनीकी शिक्षा में छात्रों को नई दिशा देने की जिम्मेदारी संभालने वाला वीर माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय वित्तीय अनियमितताओं में फंसा हुआ है. स्थिति यह है कि अब शासन ने ईआरपी (एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) सॉफ्टवेयर प्रकरण पर पांच सदस्य जांच कमेटी गठित कर दी है. यह समिति 15 दिनों के भीतर ईआरपी सॉफ्टवेयर में करोड़ों रुपए खर्च करने के मामले की जांच करेगी. जिसमें विश्वविद्यालय के लिए तैयार किए गए सॉफ्टवेयर का तकनीकी परीक्षण किया जाएगा.
5 सदस्य समिति गठित
ईआरपी सॉफ्टवेयर के संचालन में टेंडर प्रक्रिया और वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए बनाई गई जांच समिति में निदेशक आईटीडीए आईएएस अफसर नितिका खंडेलवाल को अध्यक्ष बनाया गया है. इनके अलावा राज्य सूचना विज्ञान अधिकारी एसआईसी, वित्त अधिकारी आईटीडीए, आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर और एक अन्य अधिकारी को नामित किया गया है.
विवि के अधिकारी स्तर पर साठगांठ संभव
इससे पहले शासन स्तर पर हुई बैठक में उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय और सॉफ्टवेयर संचालित करने वाली कंपनी के बीच अनुबंध को निरस्त करने का फैसला लिया गया था. तमाम बिंदुओं पर चर्चा के बाद शासन स्तर पर यह माना गया था कि इस मामले में निजी कंपनी को करीब 2 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष के भुगतान में भारी अनियमितता और लापरवाही की गई. यही नहीं, यह आशंका भी लगाया गया कि इसके लिए विश्वविद्यालय के अधिकारियों के स्तर पर सांठ गांठ होना भी संभव है.
करोड़ों रुपये के सॉफ्टवेयर में कई कमियां
बड़ी बात यह है कि निजी कंपनी से जब ईआरपी सॉफ्टवेयर को लेकर प्रस्तुतीकरण देने के लिए कहा गया तो प्रस्तुतीकरण के बाद सॉफ्टवेयर को लेकर कई कमियां सामने आई. यह पाया गया कि उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए भारत सरकार द्वारा लागू समर्थ पोर्टल बिना शुल्क के जिस स्तर के सॉफ्टवेयर को तैयार करता है, निजी कंपनी द्वारा करोड़ों रुपए लेकर भी बेहद निम्न स्तर का ईआरपी सॉफ्टवेयर विकसित किया गया. https://sarthakpahal.com/
विश्वविद्यालय के रजिस्टर या किसी भी कर्मचारियों को यह जानकारी ही नहीं थी कि इसका डेटा कहां होस्ट किया गया है. प्रस्तुतीकरण के दौरान पाया गया कि एक अच्छे ईआरपी में जो फीचर होने चाहिए, वो नहीं थे. साथ ही कई मॉड्यूल भी नहीं बनाए गए थे. इस सबके बावजूद भी निजी कंपनी को भुगतान होता रहा. बड़ी बात यह है कि वित्त अधिकारी ने इस पर सवाल भी खड़े किए. लेकिन फिर भी कोई एक्शन नहीं लिया गया. उधर सॉफ्टवेयर विकसित होने के बाद तकनीकी समिति से परीक्षण कारण बिना ही निजी कंपनी को भुगतान होता रहा.देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/
निजी कंपनी को विश्वविद्यालय ने हर साल 567 रुपए प्रति छात्र की दर से दो करोड़ रुपए प्रति वर्ष भुगतान किया. इस तरह सॉफ्टवेयर को लेकर बेहद निम्न स्तर का काम होने के बावजूद विश्वविद्यालय ने इस पर ध्यान नहीं दिया. यही वह बात है जिसको लेकर शासन ने संज्ञान लिया और इस पर जांच करने का निर्णय लिया गया.