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उत्तरकाशी के सूर्यकुंड में चावल उबालकर यात्री प्रसाद के रूप में ले जाते हैं घर, जानें क्या है मान्यता

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बड़कोट (उत्तरकाशी), 15 अगस्त। यमुनोत्री धाम पहुंचने वाले यात्री सूर्यकुंड में चावल का उबालकर उसे प्रसाद के रूप में अपने साथ ले जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर धाम में दो गर्मकुंड में यात्री स्नान के साथ ही उसके आयुर्वेदिक स्वास्थ्य लाभ भी ले रहे हैं। उन कुंडों में स्नान कर यात्री धाम की पांच किमी की खड़ी चढ़ाई की थकान को भी उतार रहे हैं। सूर्य कुंड के गर्म झरने इस मायने में अनोखे हैं कि उनका तापमान बहुत ज़्यादा होता है, 88 डिग्री सेल्सियस (190 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक। भक्तगण चावल या आलू की टहनियों को कपड़े में लपेटकर और उन्हें पानी में डुबोकर प्रसाद तैयार करने के लिए झरने के उबलते पानी का उपयोग करते हैं।

यमुनोत्री धाम में निकलने वाली गर्म धाराएं उस क्षेत्र के प्राकृतिक भिन्नताओं का यात्रियों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहती है। यमुनोत्री धाम के मुख्य मंदिर के पास एक गर्मधारा निकलती है। इसे सूर्यकुंड कहा जाता है। धाम में पहुंचने वाले यात्री वहां पर अपने घरों से लाए चावल को उस्में डालकर उबालते हैं और उसके बाद पोटली में बांधकर उसे प्रसाद के रूप में अपने घरों में ले जाते हैं। वहीं धाम में पहुंंचने वाले सभी यात्री वहीं पर अपनी पूजा तीर्थ पुरोहितों से संपन्न करते हैं। वही इस धारा को ही दो गर्मकुंडों में प्रवाहित किया गया है। वहां पर यात्री पांच किमी की खड़ी चढ़ाई पार कर जब यमुनोत्री धाम में पहुंचकर इन कुंडों में स्नान करते हैं। तो उनकी सारी थकान मिट जाती है।

धार्मिक महत्व के लेकर सुरेश उनियाल बताते हैं कि सूर्यकुंड निकलने वाली जलधारा के इस तप्त कुंड में स्नान और पान करने से यम यातना से मुक्ति मिलती है, जिसका स्कंद पुराण में भी उल्लेख है। वहीं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी तप्त कुंड में स्नान करने से त्वचा सबंधी बिमारी से भी छुटकारा मिलता है। आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी डा बिरेंद्र चंद कहते हैं कि इस गर्म पानी में सोडियम पाया जाता है। इससे कुंड में स्नान करने से पुराने त्वचा रोग भी ठीक होता है।

धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि यमुनोत्री धाम में मां अवतरित होने पर यमुना ने सूर्य से अपनी किरणों का अंश यमुनोत्री में होने का वरदान मागा। सूर्यदेव ने अपनी पुत्री यमुना का आग्रह मानकर वरदान दिया कि सूर्य की एक किरण के कई अरबवें अंश का मामूली प्रभाव यहा पर सदैव मौजूद रहेगा। उसी अंश से यमुनोत्री धाम में दो जल धाराएं निकलती हैं, जिसमें एक सूर्य कुंड और दूसरी तप्तकुंड में प्रवाहित हो रही है। मा यमुना सूर्य पुत्री हैं और पुत्री दो कुलों का उद्धार करती हैं। मां यमुना ने भूलोक में उतरने पर सूर्य देव से अपनी किरणों के अंश के यहां स्थित होने का वरदान मांगा। सूर्य कुंड में पके चांवलों का बड़ा ही महातम्य है। इस प्रसाद से तेज एवं पुण्य की प्राप्ति होती है। जबकि, तप्त कुंड में स्नान करने से जन्म जन्मातरों के पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यमुनोत्री मंदिर के निकट सूर्यकुंड से निकलती गर्म जलधारा में श्रद्धालु पोटली में चावल बांधकर डाल देते हैं। कुछ समय बाद यह चावल पक जाता है और मंदिर में इसका भोग लगाकर प्रसाद स्वरूप श्रद्धालु घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही तप्त कुंड में भी गर्म जलधारा प्रवाहित होती है। इसमें श्रद्धालु स्नान कर यात्रा की थकान उतारते हैं। वैज्ञानिक आधार के अनुसार यमुनोत्री धाम में भूमिगत गंधक की चट्टानों के कारण यहां स्रोतों से गर्म पानी निकलता है। गंधक के संपर्क में आने से पानी रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप गर्म हो जाता है। यमुनोत्री धाम में गर्म पानी के स्रोत आस्था का केंद्र बन गए हैं। यही वजह है कि यमुनोत्री धाम में इन गर्म जलधाराओं के प्रसाद और स्नान का महत्व माना जाता है।

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