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आखिर क्यों श्रीकृष्ण को तोड़ना पड़ा था अपनी सबसे अमीर पत्नी सत्यभामा का घंमड

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एंटरटेनमेंट डेस्क, 15 अगस्त। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पावन पर्व मानाया जाता है. यह पर्व श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें उनके बाल रूप की विशेष पूजा की जाती है. इस साल यह त्योहार 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा. इस दिन भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करते हैं और पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में जन्मोत्सव मनाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है.

कौन थीं सत्यभामा?
श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा बेहद सुंदर और धनवान थीं. सत्यभामा को अपनी सुंदरता और अपार धन पर बहुत गर्व था. एक बार श्रीकृष्ण के जन्मदिवस पर उन्होंने तय किया कि वे सबको दिखाएंगी कि वे श्री कृष्ण से कितना प्रेम करती हैं. इसके लिए उन्होंने ‘तुलाभार’ करने की योजना बनाई. इसका अर्थ है श्री कृष्ण के वजन के बराबर सोना गरीबों में बांटना.

सोना भी नहीं हिला सका तराजू
सत्यभामा ने सभा में एक बड़ी तराजू की व्यवस्था कराई. इसके बाद श्रीकृष्ण एक पलड़े पर जाकर बैठ गए. सत्यभामा जानती थीं कि श्रीकृष्ण का वजन कितना है इसलिए उन्होंने पहले से ही उनके वजन के हिसाब से सोना तैयार कर रखा था. श्रीकृष्ण के तराजू पर बैठने के बाद सत्यभामा ने उनके वजन के बराबर सोना दूसरे पलड़े पर रखना शुरू कर दिया था. लेकिन हैरानी की बात यह है कि सारा सोना रखने के बाद भी तराजू का संतुलन नहीं बदला. उन्होंने अपने सारे गहने भी रख दिए, फिर भी श्रीकृष्ण का पलड़ा भारी ही रहा. यह देखकर सत्यभामा शर्म से रोने लगीं, क्योंकि पूरे नगर के सामने उनका घमंड टूट चुका था.

रुक्मिणी का उपाय
तब सत्यभामा ने रुक्मिणी से मदद मांगी. उन्होंने रुक्मिणी से पूछा, ‘अब मैं क्या करूं?’ रुक्मिणी बाहर गईं और तुलसी के पौधे से तीन पत्ते तोड़े और उन्होंने भक्ति भाव से तराजू के सोने वाले पलड़े पर तुलसी के पत्ते रख दिए. जैसे ही तुलसी के पत्ते रखे गए, श्रीकृष्ण का पलड़ा हल्का होकर ऊपर आ गया था.

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