उत्तराखंडमनोरंजनयूथ कार्नरशिक्षासामाजिक
मां नंदा की लोकजात के लिए मां नंदा की डोली कैलाश प्रवास के लिए हुई रवाना

चमोली, 17 अगस्त। मां नंदा की लोकजात को लेकर देवभूमि में श्रद्धा और आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है। जनपद चमोली के कुरुड़ सिद्धपीठ मंदिर से मां नंदा की डोली ने वार्षिक कैलाश प्रवास के लिए प्रस्थान किया। इस दौरान हजारों भक्तों ने नम आंखों से मां को विदा किया।
15 दिन तक चलने वाली यह यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरेगी
यह वार्षिक नंदा लोकजात उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 15 दिन तक चलने वाली यह यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरती है, जहां गांव-गांव में भक्त माता का आशीर्वाद लेते हैं। अंत में यह यात्रा नंदा सप्तमी के दिन अपने अंतिम पड़ाव बालपटा और बेदनी कुंड में समाप्त होगी। यात्रा के दौरान भक्तों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नंदा मंदिर समिति के अध्यक्ष सुखबीर सिंह रौतेला ने बताया कि यह यात्रा पुजारी और ग्रामीणों के सहयोग से आयोजित होती है। उन्होंने सरकार और प्रशासन से इस यात्रा में सुविधाओं पर ध्यान देने की मांग की।
यह वार्षिक नंदा लोकजात उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 15 दिन तक चलने वाली यह यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरती है, जहां गांव-गांव में भक्त माता का आशीर्वाद लेते हैं। अंत में यह यात्रा नंदा सप्तमी के दिन अपने अंतिम पड़ाव बालपटा और बेदनी कुंड में समाप्त होगी। यात्रा के दौरान भक्तों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नंदा मंदिर समिति के अध्यक्ष सुखबीर सिंह रौतेला ने बताया कि यह यात्रा पुजारी और ग्रामीणों के सहयोग से आयोजित होती है। उन्होंने सरकार और प्रशासन से इस यात्रा में सुविधाओं पर ध्यान देने की मांग की।
पुजारी मंशा राम गौड़ ने कहा कि यह यात्रा हर साल आयोजित की जाती है और इसे लेकर भक्तों में जबरदस्त उत्साह रहता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी जीवंत रखती है। मां नंदा की यह यात्रा उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान है, जो हर साल भक्तों को अपनी ओर खींचती है।