
केएस रावत। हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड बेहद खूबसूरत पहाड़ी प्रदेश है. यहां बहने वाली नदियां, ऊंचे-ऊंचे पहाड़, झील-झरनों के साथ ही धार्मिक और पर्यटन स्थल देश ही नहीं दुनियाभर के लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उत्तरकाशी जिला भी अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। जिले की हर्षिल घाटी की खूबसूरती लाजवाब रही है। इसने अंग्रेजों से लेकर पर्यटकों और फिल्मकारों तक को अपनी ओर आकर्षित किया है।
आज धराली और हर्षिल आपदा से उपजे दर्द से कराहते हुए दुनिया की नजरों में बेचारगी का सबब बने हुए हैं। हालांकि, देश-दुनिया के बीच इस खूबसूरत घाटी की पहचान तब से है, जब उत्तरकाशी जिला भी नहीं बना था। रियासत काल की हर्षिल घाटी को पहले पहल 19वीं सदी में पहाड़ी विल्सन नाम से विख्यात अंग्रेज कारोबारी फ्रेडरिक विल्सन ने पहचान दिलाई थी। उत्तरकाशी को असली पहचान तब मिली जब 1980 के दशक में हिंदी सिनेमा के शोमैन राज कपूर के हाथों इस क्षेत्र की खूबसूरती बड़े पर्दे पर इस कदर उभरी कि उस दौर में यह छोटा सा ग्रामीण अंचल पूरी दुनिया में छा गया।
फिल्म की बोल्डनेस को लेकर देशभर में खूब हुआ था विवाद
मंदाकिनी और राजीव कपूर अभिनीत इस फिल्म की बोल्डनेस को लेकर तब देशभर में विवाद भी खूब हुआ। विरोध में उठी आवाजों में भागीरथी घाटी और खासकर हर्षिल क्षेत्र के लोगों की आवाज सबसे ज्यादा मुखर थी। यह अलग बात है कि धराली गांव, हर्षिल गांव और आसपास के तमाम पर्वत, नदियों, झरनों, हरियाली, रोजमर्रा के लोकजीवन, यहां के लोगों के संघर्ष, हर्षिल का पोस्ट ऑफिस और चिट्ठी का इंतजार, स्थानीय ग्रामीण जीवन के संघर्ष, उनके वस्त्राभूषण, भोलेपन के साथ छले जाने के उनके भय समेत इस पूरी घाटी की विविधतापूर्ण खूबसूरती को जिस बेहतरीन ढंग से पर्दे पर उतारा गया था, वह सिर्फ राजकपूर जैसा शोमैन ही कर सकता था। आज भी हर्षिल घाटी का नाम आते ही लोगों को राम तेरी गंगा मैली जहां में ताजा हो आती है। विडंबना यह, कि आज धराली के मटियामेट होने के साथ पूरी हर्षिल घाटी कराह रही है और उसकी तबाही से गंगा (भागीरथी) भी मैली-कुचैली हुए बिना नहीं रह पाई है।
भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है हर्षिल
उत्तरकाशी जिले में भागीरथी (गंगा) नदी के किनारे हिमालय की गगन चूमती सुदर्शन, बंदरपूंछ, सुमेरू और श्रीकंठ चोटियों की गोद में समुद्रतल से 7,860 फीट की ऊंचाई पर बसे हर्षिल को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। उत्तरकाशी में भागीरथी नदी के किनारे बसे ये छोटे-छोटे गांव अपने आपमें बेहद संपन्न हैं. चारों ओर बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां, घने देवदार के जंगल और भागीरथी का शांत प्रवाह इस जगह को स्वर्ग सा बनाते हैं. सर्दियों में जब बर्फ की चादर इस क्षेत्र को ढक लेती है तो यह और भी मनमोहक हो जाता है.
फिल्म का सबसे चर्चित दृश्य की इसी हर्षित में हुआ थी शूटिंग
फिल्म का सबसे चर्चित दृश्य जिसमें अभिनेत्री मंदाकिनी एक झरने के नीचे नहाती नजर आती हैं, वो हर्षिल में ही शूट किया गया था. इस झरने का नाम बाद में मंदाकिनी झरना ही पड़ गया. इतना ही नहीं, ‘हुस्न पहाड़ों का’, ‘ओ साहिबा’ जैसे सुपरहिट गीत भी हर्षिल की घाटी में फिल्माया गए हैं. इस गीत में बर्फीली चोटियां, घने जंगल और भागीरथी नदी का प्रवाह खूबसूरती से दिखाया गया है. फिल्म में कई प्रेम दृश्य और गंगोत्री यात्रा से जुड़े सीन हर्षिल और धराली के आसपास शूट किए गए हैं, जो इस क्षेत्र की शांत और खूबसूरती को और भी चार चांद लगाते हैं.
उत्तरकाशी से 75-80 किमी दूर है गंगोत्री का प्रमुख पड़ाव धराली
उत्तरकाशी से करीब 75-80 किमी दूर स्थित हर्षिल घाटी में ही धराली भी स्थित है, जिसने पिछले दो-ढाई दशक में गंगोत्री यात्रा मार्ग के प्रमुख पड़ाव और बड़े कस्बे का स्वरूप ले लिया। हर्षिल अपने सेबों की वजह से दुनिया भर में मशहूर है। 24 फरवरी 1960 से पहले उत्तरकाशी पहले यह टिहरी जिले का हिस्सा था। आजादी से पहले यह पूरा क्षेत्र टिहरी रियासत का हिस्सा था और कभी अंग्रेजों के अधीन नहीं रहा। यही वजह रही कि 1839 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से भगोड़ा होकर फ्रेडरिक विल्सन टिहरी रियासत के मौजूदा उत्तरकाशी जिले वाले हिस्से में चले आए। कुछ अरसा बाद वे राजा सुदर्शन शाह की अनुमति से जंगलों के ठेकेदार बन गए थे।
आखिरी डाकघर के सीन
हर्षिल में भारत-चीन सीमा पर स्थित आखिरी डाकघर के आसपास भी फिल्म के कुछ दृश्य फिल्माए गए थे. उस सीन में अभिनेत्री मंदाकिनी चिट्ठी का इंतजार करती थी. इस डाकघर से पर्यटक रूबरू हो सकें, इसके लिए प्रशासन ने ‘राम तेरी गंगा मैली’ के एक दृश्य का पोस्टर भी लगाया हुआ है. यह डाकघर आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. आने वाले पर्यटक आज भी भारत-चीन सीमा के इस डाकघर देखने आते हैं.
प्रकृति के साथ संतुलन जरूरी
उत्तराखंड को बेहतर तरीके से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि हर्षिल और धराली की यह त्रासदी एक बार फिर हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की याद दिलाती है. यह क्षेत्र जो कभी राज कपूर की फिल्म के जरिए दुनिया भर में छा गया था, आज मदद की पुकार लगा रहा है.