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ब्रह्मकपाल में तर्पण करने बड़ी संख्या में पहुंच रहे विदेशी श्रद्धालु, जानें यहां का विशेष महत्व

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चमोली (जोशीमठ), 13 सितम्बर। अलकनंदा किनारे स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में पितर तर्पण करने के लिए विदेशी श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु अपने पितरों को तर्पण देने के बाद बदरीनाथ मंदिर के दर्शनों को पहुंच रहे हैं। पितर पक्ष के चलते इन दिनों देश के अलग-अलग राज्यों से श्रद्धालु बदरीनाथ धाम में पहुंच रहे हैं। बदरीनाथ मंदिर के दर्शनों के साथ ही श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी कर रहे हैं। इसके अलावा विदेश से भी श्रद्धालु ब्रह्मकपाल में तर्पण के लिए पहुंच रहे हैं।

ब्रह्मकपाल के तीर्थ पुरोहित मदन मोहन कोठियाल ने बताया कि विभिन्न प्रांतों के साथ ही नेपाल, रुस, यूक्रेन सहित कई देशों से श्रद्धालु ब्रह्मकपाल में आकर अपने पितरों को पिंडदान कर रहे हैं। बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल को कपालमोचन तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर विचलित हो गया था तब भगवान शिव ने उसे काट दिया था जो बदरीनाथ के पास अलकनंदा नदी के किनारे गिरा। यह आज भी यहां पर शिला के रूप में अवस्थित है। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक यहां देश से लोग पितरों का पिंडदान व तर्पण करने आते हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष में यहां भीड़ लग जाती है।

ब्रह्मकपाल को लेकर मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति ने कभी भी पितरों का कहीं भी पिंडदान या तर्पण नहीं किया तो वह यहां आकर कर सकता है। यहां पिंडदान व तर्पण करने के बाद अन्यत्र कहीं भी पिंडदान या तर्पण नहीं करना चाहिए क्योंकि यह पिंडदान करने का श्रेष्ठ स्थान माना गया है। ब्रह्मकपाल के तीर्थ पुरोहित हरीश सती ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में यहां पिंडदान व तर्पण करने वालों की भीड़ लगी रहती है।

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