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उत्तराखंड के इन दो गांवों में नहीं मनाया जाता दशहरा, ग्रामीणों ने आपस में किया गागली ‘युद्ध’

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साहिया (देहरादून), 2 अक्टूबर। रानी-मुन्नी की मृत्यु के श्राप से मुक्ति पाने और पश्चाताप के लिए जौनसार बावर के उदपाल्टा और कुरौली गांव के ग्रामीणों ने आपस में गागली युद्ध किया। ग्रामीण एक दूसरे पर अरबी के पौधों के डंठल और पत्ते लेकर टूट पड़े। दोनों गांवों के ग्रामीणों के बीच करीब एक घंटे तक प्रतीकात्मक युद्ध हुआ। ग्रामीणों ने जंगल में क्याणी डांडा नाम के स्थान पर स्थित कुएं में घास फूस से बनी रानी और मुन्नी की प्रतिमाओं को विसर्जित भी किया।
दशहरा के दिन पूरे देश में बुराई के प्रतीक रावण, कुंभकरण, मेघनाथ के पुतले का दहन किया जाता है, लेकिन अपनी अनूठी संस्कृति के लिए देश भर में प्रसिद्ध जौनसार बावर के उदपाल्टा और किरौली गांव के ग्रामीण आपस में गागली युद्ध करते हैं। इस युद्ध में किसी भी गांव की जीत-हार नहीं होती है।
बृहस्पतिवार को पाइंता पर्व पर वर्षों से चली आ रही इस लोक परंपरा का निर्वहन करते हुए ग्रामीणों ने पहले रानी और मुन्नी की घास फूस से बनी प्रतिमाओं को क्याणी डांडा स्थित कुएं में विसर्जित किया। उसके बाद दोनों गांवों के ग्रामीणों ने एक-दूसरे को ललकारते हुए अरबी के डंठल और पत्तों से आपस में युद्ध किया। युद्ध के बाद सभी ने एक-दूसरे को बधाई दी। महिलाओं और पुरुषों ने हारूल, तांदी, रासो और झेंता नृत्य किया।
बताया जाता है कि उदपाल्टा गांव में रानी-मुन्नी नाम की दो बालिका थी। दोनों एक साथ कुएं पर पानी भरने जाती थी। एक दिन रानी की कुएं में गिरने से मौत हो गई। लोगों ने रानी की मौत के लिए मुन्नी को दोषी ठहराया। इससे खिन्न होकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर जान दे दी। जिसके बाद गांव में अप्रिय घटनाएं घटने लगी।
लोग महासू देवता के माली के पास गए तो उन्हें बताया कि गांव पर रानी-मुन्नी का श्राप लगा हुआ है, जिससे बचने के लिए दोनों बहनों की घास फूस की प्रतिमाओं को दशहरे के दिन कुएं में विसर्जित करने की बात कही। लोग दशहरे के दिन पश्चाताप स्वरूप गागली युद्ध करते हैैं।

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