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देश के स्वाभिमान की पुनर्स्थापना है श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

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सार्थकपहल.काम। आज सौभाग्य का पावन अवसर है। सैकड़ों वर्षों बाद यह शुभ घड़ी आई है। अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर रामलला विराजमान हो रहे हैं। पूरे संसार के सनातनी हर्षित, आनंदित और प्रफुल्लित हैं। समूचे विश्व में जय श्रीराम गुंजायमान है। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हमें यह सुखद दृश्य देखने का अवसर मिला है। श्रीरामजी की गरिमा के अनुरूप मंदिर निर्माण के लिए पीढ़ियों ने पांच सौ वर्ष तक संघर्ष किया, इसमें अनगिनत बलिदान हुए।

राम मंदिर सामूहिक शक्ति का प्रतीक


राम मंदिर हमारी संस्कृति, हमारी आस्था, राष्ट्रीयत्व और सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। यह सनातन समाज के संकल्प, संघर्ष और जिजीविषा का ही परिणाम है कि आज श्रीराम मंदिर निर्माण का सपना साकार हो रहा है। यह उमंग और उत्सव का अवसर है, समूचा समाज उल्लास के साथ खुशियां मना रहा है। राजा राम प्रत्येक भारतीय और विश्व में व्याप्त सनातनियों के आदर्श हैं। वे सत्यनिष्ठा के प्रतीक, सदाचरण और आदर्श पुरुष के साकार रूप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्रीराम की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे सबके थे और सबको साथ लेकर चलते थे।

श्रीराम को आदर्श राजा कहा जाता था
प्रजावत्सल राजा राम के लिए न्याय और राजधर्म सर्वोपरि था। इन्हीं अद्भुत विशिष्टताओं के कारण श्रीराम को आदर्श राजा कहा जाता है। उनकी राज व्यवस्था में न कोई छोटा था न कोई बड़ा था, सभी समान सम्मान के अधिकारी थे। रामराज्य में प्रजा की सुखद स्थिति का रामचरित मानस के उत्तरकांड में उल्लेख है- ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।’ अर्थात रामराज्य में शासन व्यवस्था इतनी आदर्श थी कि प्रजा समृद्ध, रोग रहित और आपदा रहित थी। वे अपना वनवासकाल पूर्ण करके लंका से सीधे अयोध्या नहीं आए। लौटते समय निषाद, किरात, केवट और वनवासी समाज के सभी प्रमुख बंधुओं को अपने साथ लाए थे।

500 साल के धैर्य के बाद अयोध्या आ रहे हैं श्रीराम


लगभग पांच सौ वर्षों की दीर्घ प्रतीक्षा और धैर्य के बाद रामलला पूर्व प्रतिष्ठा के साथ अयोध्या आ रहे हैं। यह प्रगति और परंपरा का उत्सव है। इसमें विकास की भव्यता और विरासत की दिव्यता है। यही भव्यता और दिव्यता हमें प्रगति पथ पर आगे ले जाएगी। प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतों में श्रीराम कथा सप्ताह मनाया जा रहा है। प्रभु श्रीराम ने वनवासकाल के लगभग 11 वर्ष चित्रकूट में व्यतीत किए हैं। हमने तीर्थ स्थल चित्रकूट सहित रामवन पथ गमन मार्ग के 1450 किलोमीटर के 23 प्रमुख धार्मिक स्थलों का विकास करने का निर्णय लिया है।

आत्मनिर्भर बनने के संगठित होना जरूरी
अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का यह ऐतिहासिक क्षण हम सभी के लिए प्रेरणा का अवसर है। हम इस संकल्प की सिद्धि के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत को यदि सशक्त और विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में अग्रणी बनाना है, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज संगठित रहे, समरस रहे, एकजुट रहे और प्रत्येक व्यक्ति आत्मनिर्भर बने। यदि भारत राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाना है, तो पूरे समाज को आत्मनिर्भर बनना होगा, तभी रामराज्य की कल्पना सार्थक हो सकेगी। आज रामलला अपने जन्म स्थल पर विराजमान हो रहे हैं इस सुमंगल अवसर पर सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई…। https://sarthakpahal.com/

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