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मसूरी में नदी में मछलियां पकड़ने को उमड़ा हुजूम, ढोल-नगाड़ों पर झूमे लोग

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मसूरी, 29 जून। उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर और जनजातीय परंपराओं को जीवित रखने वाला प्रसिद्ध मौण मेला इस साल भी जौनपुर क्षेत्र में पूरे हर्षोल्लास से आयोजित किया गया. मेले में यमुना घाटी, अगलाड़ घाटी और भद्री घाटियों के दर्जनों गांवों के साथ ही समीपवर्ती जौनसार के अलावा मसूरी व विकासनगर के लोग शामिल हुए, सभी ने नदी में उतरकर मछलियां पकड़ी. वहीं, मौण मेले में ढोल-दमाऊ की थाप पर ग्रामीण ने पारंपरिक नृत्य भी किया.

लालूर पट्टी खैराड़, नैनगांव, मरोड़, मताली, मुनोग, कैथ और भूटगांव के ग्रामीण टिमरू या तिमूर के पाउडर लेकर ढोल-दमाऊं के साथ अगलाड़ नदी के मौण कोट नामक स्थान पर पहुंचे. जहां जल देवता की विधिवत पूजा-अर्चना के साथ टिमरू पाउडर से सभी पांतीदारों का टीका किया गया. फिर टिमरू पाउडर नदी में डाला गया. इसके बाद ग्रामीण मछलियां पकड़ने नदी में उतरे.

ढोल-दमाऊं की थाप पर महिला व पुरुषों ने सामूहिक से रूप तांदी नृत्य किया। करीब दो बजे दोपहर को ग्रामीणों ने मिलकर अगलाड़ नदी में टिमरु का पाउडर (मौण) डाला। मौण को नदी में डालते ही सैकड़ों की संख्या में लोग मछली पकड़ने नदी में उतर गए, लेकिन तेज बारिश व पानी के तेज बहाव के कारण लोग कम मात्र में मछली पकड़ पाए।

बारिश के कारण गत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष कम लोग मौण मेले में पहुंचे। मौण मेला समिति के अध्यक्ष महिपाल सजवाण ने बताया कि टिमरू के पाउडर से मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश होती है। इसी दौरान लोग मछलियों को पकड़ते हैं। टिमरू के पाउडर से मछलियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है।

मौण मेले में सात पट्टियों के लोगों की मुख्य भूमिका है। प्रत्येक साल एक ही पट्टी के लोगों को मौण तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाती है। इस वर्ष नदी में मौण डालने की जिम्मेदारी छज्यूला पट्टी के बंग्लों की कांडी, सैंजी, कांडीखाल, भटोली, चम्या, बनोगी, गांवखेत, भेडियान, घंडियाला, सरतली, कसोन, कांडा, रणोगी, तिमलियाल, पाली कुणा गांव की थी। मौण मेले के लिए गांव के प्रति परिवारों द्वारा टिमरु का पाउडर तैयार करना होता है।

तिमूर के पाउडर का होता है इस्तेमाल
इस मेले की सबसे खास बात ये है कि मछलियों को पकड़ने के लिए कोई आधुनिक उपकरण नहीं, बल्कि स्थानीय जड़ी-बूटी टिमरू का इस्तेमाल किया जाता है. इस पौधे की पत्तियों और टहनियों को पीसकर उसका पाउडर नदी में डाला जाता है, जिससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं.

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