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उत्तराखंड के स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता पाठ शुरू होते ही भूचाल, शिक्षक संघ, कांग्रेस ने जताया विरोध

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देहरादून, 161 जुलाई। उत्तराखंड सरकार ने सरकारी स्कूलों में बच्चों को भगवद् गीता का ज्ञान देने का निर्णय लिया है. जिसके तहत आगामी शैक्षणिक सत्र से श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाएगा, लेकिन उससे पहले सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक का वाचन शुरू करवा दिया गया है. जहां एक ओर सरकार इसे बेहतर पहल करार दे रही है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में सरकार के इस पहल का विरोध भी शुरू हो गया है.

NIP 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा का जिक्र
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा का जिक्र किया गया है. जिसके तहत बच्चों को अपनी संस्कृति से रूबरू कराना है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार ने भारतीय ज्ञान परंपरा की जानकारी बच्चों को देने के लिए एक बड़ी पहल शुरू की है. इसी को लेकर बीती 6 मई को सीएम पुष्कर धामी ने शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक की थी. जिसमें उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि नई शिक्षा नीति में जो भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रावधान किया गया है, उसके तहत बच्चों के पाठ्यक्रम में श्रीमद्भागवद् गीता/श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण को शामिल किया जाए.

15 जुलाई से स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक वाचन शुरू
सरकार के इस निर्णय के बाद शिक्षा विभाग ने एक और कदम आगे बढ़ते हुए 15 जुलाई से प्रदेश के सभी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक के वाचन कराने का निर्णय लिया. साथ ही इसके लिए माध्यमिक शिक्षा निदेशक की ओर से 14 जुलाई को विधिवत आदेश भी जारी किया गया. इस आदेश के अगले दिन यानी 15 जुलाई से ही प्रदेश के तमाम शासकीय और अशासकीय स्कूलों में प्रार्थना के समय बच्चे श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का वाचन करते दिखाई दिए.

क्या कहती है संविधान की धारा 28(1)
स्कूलों में शुरू हुई इस व्यवस्था के बाद ही अब न सिर्फ विपक्षी दल बल्कि, अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. जिसकी मुख्य वजह है कि ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28(1) में कहा गया है कि पूर्ण या फिर आंशिक रूप से सरकारी निधि से संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती.’ यही वजह है कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के निर्णय का विरोध शुरू हो गया है. देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/

श्रीमद्भगवद्गीता बच्चों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा : सरकार
श्रीमद्भगवद्गीता को जीवन के हर क्षेत्र में रास्ता दिखाने वाला माना गया है. साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है.क्योंकि, श्रीमद्भगवद्गीता न सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ है. बल्कि, ये इंसानी जीवन के विज्ञान, मनोविज्ञान एवं व्यवहार शास्त्र का भी उत्कृष्ट ग्रंथ है. जिसमें इंसान के व्यवहार, निर्णय क्षमता, कर्तव्यनिष्ठा, तनाव प्रबंधन के साथ विवेकपूर्ण जीवन जीने के वैज्ञानिक तर्क मौजूद हैं. स्कूलों में छात्र-छात्राओं को एक बेहतर नागरिक बनाए जाने के लिहाज से श्रीमद्भगवद्गीता एक मील का पत्थर साबित हो सकती है.

विरोध में उतरा अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन
उधर, अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से एक आदेश जारी किया गया. जिसमें प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में रोजाना प्रार्थना के समय श्रीमद्भगवद्गीता का श्लोक सुनाए जाने और श्लोक की व्याख्या करने का आदेश जारी किया गया. जिस आदेश का विरोध करते हुए एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन ने माध्यमिक शिक्षा विभाग से इस आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया है.

श्रीमद्भगवद्गीता एक धार्मिक ग्रंथ है और संविधान में ये कहा गया है कि सरकारी निधि से चलने वाले स्कूलों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती. ऐसे में ये आदेश संविधान की अनुच्छेद 28 (1) का उल्लंघन कर रही है. इतना ही नहीं स्कूलों में तमाम धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं. ऐसे में ये निर्णय भेदभाव की भावना को जन्म दे सकता है
संजय कुमार टम्टा, अध्यक्ष, एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन, उत्तराखंड

बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति प्रदेश में शुरू हो, लेकिन सनातन धर्म को मानने वालों का श्रीमद्भगवद्गीता एक धार्मिक ग्रंथ है. इस ग्रंथ में जीवन जीने का रास्ता उपदेश के जरिए बताया गया है. जबकि, हर धर्म के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, ऐसे में यह आदेश सिर्फ विवाद का विषय बनाने के मकसद से जारी किया गया.
सूर्यकांत धस्माना, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस

कलिकाल में श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा शास्त्र एवं ग्रंथ है, जिसको पढ़ने से कलिकाल के प्रभाव से बच जाता है. ऐसे में व्यक्ति नियम, संयम में रहता है. साथ ही उसका आत्मबल भी बढ़ता है. हर प्रकार से न्याय प्रिय होकर समभाव से काम करता है. ऐसे में भागवत गीता पढ़ने से बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार आएंगे.
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

क्या है माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से जारी आदेश
प्रार्थना सभा में रोजाना श्रीमद्भगवद्गीता के कम से कम एक श्लोक को अर्थ समेत छात्र-छात्राओं को सुनाया जाए.
श्लोक के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जानकारी भी स्कूली छात्र-छात्राओं को दी जाए.
हर हफ्ते एक मूल्य आधारित श्लोक को ‘सप्ताह का श्लोक’ घोषित कर उसे सूचना पट्ट पर अर्थ के साथ लिखा जाए.
इस श्लोक का बच्चे अभ्यास करें और हफ्ते के अंतिम दिन इस पर चर्चा की जाए.
समय-समय पर शिक्षक इन श्लोकों की व्याख्या करें और बच्चों को जानकारी भी दें.
श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांत किस प्रकार मानवीय मूल्य, व्यवहार, नेतृत्व कौशल, निर्णय क्षमता, भावनात्मक संतुलन और वैज्ञानिक सोच विकसित करते हैं, उसकी जानकारी से छात्रों को रूबरू करवाएं.
श्रीमद्भगवद्गीता में दिए गए उपदेश सांख्य, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और नैतिक दर्शन पर आधारित है, जो कि धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से पूरे मानवता के लिए उपयोगी हैं.
श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक छात्र-छात्राओं को केवल विषय या पठन सामग्री के रूप में न पढ़ाए जाएं.

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