
यमकेश्वर, 16 जुलाई। हरेला पर्व केवल पर्यावरण संतुलन को साधने में ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़े तमाम कारक का भी द्योतक है। हरेला एक हिंदू त्यौहार है जो मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है।
हरेला पर्व के अवसर पर 16 जुलाई को राजकीय महाविद्यालय बिथ्याणी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर योगेश कुमार शर्मा के नेतृत्व में समस्त प्राध्यापकों एवं कर्मचारियों के द्वारा पौधरोपण कर विभिन्न प्रकार के फलदार पौधे रोपित किए गए।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य ने कहा कि हरेला पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण चेतना का प्रतीक है। वहीं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि यह केवल कृषि परंपरा का उत्सव नहीं, बल्कि ऋतुचर्या और देह की प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली में बदलाव का संकेत भी है। इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त स्टाफ उपस्थित थे।
इस पर्व पर चर्चा के दौरान आयुष विशेषज्ञों ने भी कई संहिताओं से उदाहरण प्रस्तुत किया। इसमें ऋतुचर्या और ऋतु द्रव्यों के साथ भोजन औषधी को भी जोड़कर देखा जाता है। आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. अवनीश उपाध्याय की मानें तो यह केवल प्रकृति प्रेम ही नहीं शरीर, मन और परिवेश के संतुलन का भी असीम अनुभव कराने वाला पर्व है।
हरेला पर्व का सामाजिक महत्व
श्रावण माह में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता है तथा समूचे कुमाऊो में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्रावण माह भगवान भोलेशंकर का प्रिय महीने होता है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कहीं-कहीं हर-काली के नाम से भी जाना जाता है।