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ऑनलाइन गैम्स उड़ा रहे बच्चों की रातों की नींद

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देहरादून। ऑनलाइन गैम्स उड़ा रहे बच्चों की रातों की नींद हराम कर रहे हैं। मोबाइल और इंटरनेट टेक्नोलॉजी ने हमें कई तरह की सहूलियतें दीं। जीवन को आसान बनाया, खासतौर पर तब जब कोविड काल में इसी के सहारे बच्चों की पढ़ाई चल रही है, लेकिन इसी टेक्नालॉजी का एक दूसरा पहलू भी है जो बेहद गंभीर, खतरनाक और जानलेवा साबित हो रहा है। बच्चे मोबाइल पर या तो वीडियो गेम्स में दिलचस्पी रखते हैं या यू-ट्यूब देखने में।

ऑनलाइन गेमिंग का चस्का किसी नशे से कम नहीं है। एक बार बच्चे को ऑनलाइन गेमिंग की लत लग जाए तो इससे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है। ये ऑनलाइन गेम्स बच्चों की दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं। बच्चे अपना अधिकांश समय इन ऑनलाइन गेम्स को खेलने में खर्च कर रहे हैं। इससे बच्चों में चिड़चिड़ापन, आक्रामकता और नींद की कमी जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं।

‘बच्चों में गेमिंग डिस्ऑर्डर के मामले बढ़े हैं। गेमिंग डिस्ऑर्डर आईसीडी 11 की श्रेणी में आता है, लेकिन भारत में अभी आईसीडी 10 के तहत बीमारी का डाइग्नोस हो रहा है। गेमिंग डिस्ऑर्डर से पीड़ित रोगी अन्य मानसिक रोग से भी ग्रस्त होता है।’
डॉ. जितेंद्र रोहिला, एसोसिएट प्रोफेसर, एम्स ऋषिकेश के मनोचिकित्सा विभाग

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