
नैनीताल। आयुष डाक्टरों और एलोपैथिक डाक्टरों के राज्य सरकार बीच भेदभाव नहीं कर सकती, दोनों समान वेतन के हकदार हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। न्यायालय के इस निर्णय से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में नियुक्त 300 डाक्टरों को फायदा होगा। सरकार ने 2012 में एलोपैथिक और आयुष डाक्टर को 25 हजार मासिक मानदेय पर नियुक्त किया था। बाद में सरकार ने एलोपैथिक डाक्टरों का मानदेय 50 हजार कर दिया, मगर आयुष डाक्टरों के मानदेय में कोई वृद्धि नहीं की।
हाई कोर्ट ने दिया था समान वेतन देने का आदेश
इस असमानता के खिलाफ नैनीताल जिले के मोटाहल्दू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात आयुष डाक्टर संजय सिंह ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के निर्णय को चुनौती दी थी। 2018 में हाईकोर्ट ने दोनों चिकित्सकों को समान वेतन देने का आदेश पारित किया था। इस निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
जस्टिस विनीत सरन व जस्टिस माहेश्वरी की कोर्ट ने खारिज की याचिका
सुप्रीम कोर्ट में के जज विनीत सरन व माहेश्वर की संयुक्त पीठ ने राज्य सरकार के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि दोनों एलोपैथिक और आयुष डाक्टरों मरीजों का इलाज अपने-अपने तरीके से करते हैं। राज्य सरकार उनके बीच अंतर नहीं कर सकती। उपचार के आधार पर भेदभाद अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराया।