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मेरी बामणी गाने से धूम मचाने वाले नवीन सेमवाल अब नहीं रहे

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देहरादून। मेरी बामणी गाने से प्रसिद्धि पाने वाले लोक गायक, संगीतकार नवीन सेमवाल का 44 साल की उम्र में दुखद निधन हो गया है। ये उत्तराखंड के संगीत जगत के लिए एक और बड़ी क्षति है। अपने शानदार अभिनय के लिए मशहूर नवीन सेमवाल अब हमारे बीच नहीं रहे। मंगलवार की सुबह अचानक उनकी मौत की खबर से हर कोई स्तब्ध है।

जानकारी के अनुसार पता चला है कि नवीन सेमवाल पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। जैसे ही उनकी अंतिम सांस की खबर संगीत जगत से जुड़े हुए लोगों तक पहुंची तो सभी की आंखें नम हो गयीं। इतने शानदार कलाकार का यूं अचानक चले जाना उत्तराखंड संगीत जगत के लिए भारी क्षति है। नवीन सेमवाल रुद्रप्रयाग जिले के रहने वाले थे। उनकी उम्र अभी मात्र 44 साल की थी। वे एक गायक, गीतकार के साथ-साथ एक रंगकर्मी भी थे और उन्होंने कई गढ़वाली नाटकों, फिल्मों व गीतों में अपने अभिनय से सबका मन मोहा था।

मेरी बामणी

इससे पहले इसी महीने युवा संगीतकार व गायक गुंजन डंगवाल का एक सड़क हादसे में निधन हो गया था और अब उत्तराखंड के लोकसंगीत से जुड़े एक और युवा कलाकार का अचानक ही हमारे बीच से चले जाना उत्तराखंड संगीत जगत के लिए एक बड़ा सदमा है।

नवीन सेमवाल ने मेरी बामणी, बामणी 2, संजू का बाबा, ऐंसों का चुनों, हे मेरे लाडी, पांगरी का मेला, चल फर्जी, गंगाराम समेत कई हिट गानों में अभिनय व अपनी आवाज का जादू बिखेरने वाली आवाज मंगलवार को हमेशा हमेशा के लिए शांत हो गयी।

मेरी बामणी यूट्यूब पर धूम मचाने के बाद इस गाने पर विवाद भी हुआ। भृगु संहता ज्योतिष एवं मंत्र साधना केंद्र के अध्यक्ष संभु प्रसाद पांडे ने आरोप लगाया था कि यह गीत ब्राह्मण और यजमान के पवित्र रिश्ते को कलंकित करता है क्योंकि इसमें ब्राह्मण को बामण जातिसूचक शब्द से उपचारित किया गया है।

नवीन सेमवाल ने इस पर सफाई देते हुए कहा था कि मैं रुद्रप्रयाग में रहता हूं और यहां से 56 किमी दूर मेरी जजमानी है। वहां आने-जाने में ही सारा खर्चा हो जाता था, जिस कारण मेरी पत्नी (बामणी) के बीच विवाद होता रहता था। पत्नी बोलती थी कि जब पैसे बचते ही नहीं तो जजमानी में जाते ही क्यों हो। बस इसी बात को लेकर ये गीत बनाया गया है। ये गीत मेरे (बामण) और मेरी पत्नी (बामणी) के बीच का संवाद है। कोई इसके और मायने न निकाले और न ही राजनीति करे।

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