देहरादून। इगास पर्व पहाड़ में बग्वाल (दीपावली) के ठीक 11 दिन बाद मनाने की परंपरा है। दरअसल ज्योति पर्व दीपावली का उत्सव इसी दिन अपनी पराकाष्ठा को पहुंचता है, इसलिए पर्वों की इस शृंखला को इगास-बग्वाल नाम दिया गया। मान्यता है कि अमावस्या के दिन लक्ष्मी जागृत होती हैं, इसलिए बग्वाल को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। जबकि, हरिबोधनी एकादशी यानी इगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। सो, इस दिन विष्णु की पूजा का विधान है। देखा जाए तो उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीप पर्व शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है।
14-15 को मना सकते हैं इगास
इगास 14 के साथ ही 15 नवंबर को भी मनाया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य भाष्कर बहुगुणा ने बताया कि इस वर्ष प्रबोधनी स्मार्थ एकादशी है। जो 14 नवंबर की सुबह 6.40 बजे शुरू होकर 15 नवंबर को 12. 47 मिनट बजे तक रहेगी। उन्होंने बताया कि इगास पर्व का मुख्य दिवस 14 नवंबर है, लेकिन एकादशी के दो दिनों तक जाने के चलते 15 नवंबर को भी मनाई जा सकती है।