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देहरादून जिले में 75 साल बाद टूटेगा तिलिस्म!

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देहरादून। देहरादून जिले में 75 साल बाद तिलिस्म टूटने वाला है! आजादी के करीब 75 साल और 1951-52 के पहले आम चुनाव के 70 साल बाद क्या इस बार देहरादून जिले से किसी महिला का प्रतिनिधित्व विधानसभा चुनाव में हो पाएगा? यह सवाल आम आदमी की जुबान पर इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के अपनी एक-एक महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। इन महिला प्रत्याशियों ने अपनी-अपनी सीट पर दावेदारी पेश कर दी है।

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अविभाजित उत्तर प्रदेश में भाजपा-कांग्रेस जैसे बड़े दलों ने देहरादून जिले की किसी भी सीट से महिला को कभी प्रत्याशी बनाया ही नहीं। देहरादून जिले में राजकुमारी नामक पहली महिला ने 1977 में देहरादून नगर सीट से बतौर स्वतंत्र प्रत्याशी चुनाव लड़ा था, लेकन वे मात्र 134 वोट ही हासिल कर पाई थी। 1989 में मसूरी सीट से पहली महिला चंचलबाला स्वतंत्र उम्मीद्वार के रूप में चुनाव लड़ीं।उत्तराखंड क्षेत्र में आजादी के पूर्व के जिलों में एकमात्र देहरादून ही जिला ऐसा है, जिसके किसी भी विधानसभा क्षेत्र से आजादी के बाद से आज तक कोई महिला विधायक नहीं बन पाई है। हालांकि, आजादी के बाद अस्तित्व में आए जिलों में उत्तरकाशी और उधमसिंह नगर भी इसी श्रेणी में शामिल आता है।

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