देश-विदेशमनोरंजनयूथ कार्नरशिक्षासामाजिक

पांडवों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने हाथों में उठा ली थी द्रौपदी की खड़ाऊं… रोचक है महाभारत की यह कथा

Listen to this article

केएस रावत। महाभारत युद्ध में, भगवान कृष्ण ने पांडवों के लिए एक अमोघ रक्षाकवच का काम किया। उन्होंने न केवल अर्जुन के रथ के सारथी बनकर युद्ध में उनका मार्गदर्शन किया, बल्कि हर संकट में पांडवों की ढाल बनकर भी खड़े रहे। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा लेने के बावजूद, पांडवों के लिए हर संभव सहायता की।

इसका उदाहरण तब भी मिलता है, जब अर्जुन श्रीकृष्ण से सहायता मांगने के लिए द्वारिका जाते हैं और वहां वह चतुरंगिणी नारायणी सेना को ठुकराकर सिर्फ श्रीकृष्ण को चुनते हैं. श्रीकृष्ण ने अस्त्र-शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी फिर भी अर्जुन ने निहत्थे कृष्ण को चुना था. जब अर्जुन-द्रौपदी समेत पांडवों ने श्रीकृष्ण पर इतना विश्वास दिखाया तो श्रीकृष्ण भी उनके लिए हर विपदा को झेलने में आगे रहते थे. यहां तक उन्होंने एक बार द्रौपदी की खड़ाऊं तक हाथ में उठा ली थी.

पितामह ने ली थी युधिष्ठिर को बंदी बनाने की शपथ
यह प्रसंग महाभारत के युद्ध से जुड़ा हुआ है. युद्ध के दौरान एक दिन भीष्म पितामह ने अर्जुन को मारने और युधिष्ठिर को बंदी बनाने की शपथ ले ली थी. इस प्रतिज्ञा की कोई काट नहीं थी, क्योंकि सभी जानते थे कि अगर पितामह भीष्म ने प्रतिज्ञा ली है तो वह जरूर पूरा करेंगे. इसकी वजह से पांडव शिविर में बहुत हलचल थी. युधिष्ठिर-भीम, अर्जुन सभी परेशान थे. एक लंबी चुप्पी को तोड़ते हुए पांचाली सीधे केशव की ओर मुड़ कर बोली, तो क्या मधु सूदन कोई उपाय नहीं है.

कृष्ण ने बताया उपाय
कृष्ण के चेहरे पर उनकी चिर परचित मुस्कान बिखर गई. वह बोले, मैंने कब कहा कृष्णे, कोई उपाय नहीं है? यह सुनकर अर्जुन आतुर हुए और इतने में चारों भाई कृष्ण को चारों ओर से घेर कर खड़े गए. अर्जुन बोले, उपाय है तो बताइए न केशव, यूं ही मौन क्यों हैं? जल्दी बताइए. तब श्रीकृष्ण ने एक योजना बनाई. उन्होंने द्रौपदी से कहा कि ग्वालिन के वस्त्र पहन लो और चेहरा पूरी तरह ढक लो. फिर वे द्रौपदी को ब्रह्म मुहूर्त से पहले छिपाकर भीष्म पितामह के शिविर में ले जा रहे थे. योजना ये थी कि पितामह भीष्म ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साधना करते थे और जब उनकी पूजा समाप्ति होती थी उस दौरान द्वार पर कोई आ जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता था.

रास्ते में बज रही थी द्रौपदी की खड़ाऊं
जब श्रीकृष्ण द्रौपदी को छिपते-छिपाते ले जा रहे थे तो रास्ते में चलते हुए द्रौपदी की खड़ाऊं बज रही थी. इससे गुप्तचरों को आभास हो जाता कि कोई आ रहा है. इसलिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की खड़ाऊं निकलवाकर अपने हाथ में उठा ली. द्रौपदी छुपकर भीष्म के शिविर के बाहर पहुंची और वहीं बैठकर सुबकने लगी. जब भीष्म ने स्त्री के रोने का स्वर सुना तो बाहर आए और उनसे रोने का कारण पूछा. तब ग्वालिन बनी द्रौपदी ने कहा, मेरे पति और उनके भाई युद्ध में शामिल हैं, मुझे उनके प्राणों का संकट है. मुझे आपसे उनके लिए अभयदान चाहिए. भीष्म ने कहा कि युद्ध में प्राणहानि होने का खतरा तो रहता ही है. तब द्रौपदी ने कहा कि अगर आप आश्वासन दे देंगे तो मुझे ये डर नहीं रह जाएगा.

पितामह भीष्म ने दिया द्रौपदी को अभयदान
वचन से बंधे भीष्म पितामह ने ग्वालिन बनी द्रौपदी को उसके पति और भाइयों को अभयदान दे दिया. फिर उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पति कितने भाई हैं. द्रौपदी ने कहा- पांच… ये सुनकर भीष्म चौंक गए. भीष्म समझ गए कि जरूर ये बुद्धि किसी और की है, उन्होंने कहा, मैं तुम्हारे पतियों को अभयदान देता हूं, लेकिन अपना परिचय दो और उसे बुलाओ जो तुम्हें लेकर आया है. ये सुनते ही द्रौपदी ने अपना पल्लू उठा लिया और इतने में ही श्रीकृष्ण अंदर आ गए.

पांडवों के बच गए प्राण
उन्होंने पितामह को प्रणाम करने के लिए जैसे ही हाथ जोड़े तो उनके दोनों हाथों में द्रौपदी की खड़ाऊं बज गई. भीष्म ने अपने आसन से उठकर कृष्ण के हाथ पकड़ लिए और बोले, जिसे बचाने के लिए तीनों लोक के अधिपति खड़ाऊं उठाने को तैयार हैं , तो उसे कौन मार सकता है. जाओ पुत्री जाओ, युद्ध के सातवें दिन भी पांडव जीवित बचे रहेंगे. उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. द्रौपदी अपने सौभाग्य का वरदान लेकर लौट आयी. इस तरह कृष्ण ने सिर्फ एक युक्ति के जरिए और आशीर्वाद की महिमा से पांडवों की जान बचा ली.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button