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पैसे की चाहत में अपनी जड़ों से दूर होने की कहानी है गढ़वाली फिल्म ब्यखुनि कु छैल

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देहरादून। ब्यखुनि कु छैल (दानी आंख्युं क पाणी) पलायन और इससे बुजुर्गाें पर पड़ रहे असर के दर्द को बयां करती गढ़वाली फिल्म के प्रीमियर शो का आयोजन शनिवार को नगर निगम में किया गया। इस आयोजन में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और मेयर सुनील उनियाल गामा शामिल हुए।

फिल्म की कहानी एक बूढ़े कमजोर किंतु प्यारे पति-पत्नी के बारे में है। जो कि इस भागमभाग जिंदगी अपने बच्चों के प्यार से विलख हो जाते हैं। उनमें अभी भी जीवन की उदासी और दुखों से लड़ने का साहस मौजूद है। वो चाहते हैं कि अपनी मातृभूमि को छोड़कर विदेश में रहने वाला उनका बड़ा बेटा अब ज्यादा पैसों का मोह त्याग कर वापस अपने देश, पहाड़ आ जाये। अपने परिवार को समय दे, जो कि सबसे जरूरी है, क्योंकि इसी पैसों की चाह में वो एक दिन, अपने पहाड़, अपने गांव, अपने लोगों को छोड़कर दिल्ली चला गया था और आज उसके पास अकेलेपन के अलावा और कुछ भी नहीं है। वहीं वो अपने छोटे फौजी बेटे से भी उम्मीद करते हैं कि देश सेवा के साथ-साथ मां-बाप की सेवा करना भी उसका फर्ज है।

लेकिन कहानी तब और मोड़ लेती है, जब उनका छोटा बेटा देश के नाम शहीद हो जाता है। बड़ा बेटा मिलने तो आता है, लेकिन रहने के लिए नहीं। बेचारे बुजुर्ग मां-बाप को दो बेटों का सौभाग्य तो मिला, लेकिन जिस सुख की वो कामना कर रहे, उस सुख से बूढ़े-बुढ़िया वंचित रह जाते हैं। आज भी बेटों के हाथों से अंत में आग मिले, इसलिए बेटे की चाह रखने वाले हम लोग इस सुख से वंचित होने के डर से…..? https://sarthakpahal.com/

थिएटर ग्रुप प्रज्ञा आर्ट्स की ओर से फिल्म को तैयार किया गया है। निदेशक लक्ष्मी रावत ने बताया कि ब्यखुनि कु छैल फिल्म प्रदेशवासियों पर आधारित है। फिल्म के माध्यम से दिखाया गया है कि कई प्रदेशवासी अच्छी जिंदगी की चाह में पहाड़ छोड़कर महानगरों में चले गए, लेकिन अच्छी जिंदगी उन्हें किन शर्तों पर मिलेगी यह नहीं पता। घर में उनके बुजुर्ग अकेले रहे गए।
इनकी सेहत पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। फिल्म की कहानी को पूर्व मुख्यमंत्री और मेयर ने जमकर सराहा। कहा कि इस प्रकार की फिल्म लोगाें को वापस अपने गांव जाने के लिए प्रेरित करेंगी। लक्ष्मी रावत ने बताया कि फिल्म गांव-गांव जाकर निशुल्क दिखाई जाएगी। इस दौरान रतन सिंह असवाल, हरीश बंगारी मौजूद रहे।

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