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रचनात्मकता, तकनीकी कौशल और नवाचार के प्रतीक भगवान विश्वकर्मा को शत् शत् नमन

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केएस रावत। भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। हिंदू धर्म में इन्हें सृष्टि के दिव्य शिल्पकार, देवताओं के वास्तु विशेषज्ञ और पहले इंजीनियर के रूप में पूजा जाता है। विश्वकर्मा रचनात्मकता, तकनीकी कौशल और नवाचार के प्रतीक हैं। उनके सम्मान में भाद्रपद मास की सूर्यकन्या संक्रांति पर विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। यह वह दिन है जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन मजदूर, कारीगर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट और उद्योगपति अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चार युगों में विश्वकर्मा जी ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया था।

शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं विश्वकर्मा
विश्वकर्मा पूजा एक ऐसा त्योहार है जहां शिल्पकार, कारीगर, श्रमिक भगवान विश्वकर्मा का त्योंहार मनाते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा के पुत्र विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया था। विश्वकर्मा को देवताओं के महलों का वास्तुकार भी कहा जाता है। विश्वकर्मा दो शब्दों विश्व (संसार या ब्रह्मांड) और कर्म (निर्माता) से मिलकर बना है। इसलिए विश्वकर्मा शब्द का अर्थ है दुनिया का निर्माण करने वाला। विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं। जिन्होने विश्व के प्राचीनतम तकनीकी ग्रंथों की रचना की थी। इन ग्रंथों में न केवल भवन वास्तु विद्या, रथ आदि वाहनों के निर्माण बल्कि विभिन्न रत्नों के प्रभाव व उपयोग आदि का भी विवरण है। माना जाता है कि उन्होनें ही देवताओं के विमानों की रचना की थी। भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति ऋग्वेद में हुई है। जिसमें उन्हें ब्रह्मांड के निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान विष्णु और शिवलिंग की नाभि से उत्पन्न भगवान ब्रह्मा की अवधारणाएं विश्वकर्मण सूक्त पर आधारित हैं।

औद्योगिक श्रमिकों द्धारा इस दिन बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए प्रार्थना की जाती हैं। विश्वकर्मा जयन्ती के दिन देश के कई हिस्सों में काम बंद रखा जाता है और खूब पंतगबाजी की जाती है। विभिन्न प्रदेशों की सरकार विश्वकर्मा जयन्ती पर अपने कर्मचारियों को सावेतनिक अवकाश प्रदान करती है। यह त्योहार मुख्य रूप से दुकानों, कारखानों और उद्योगों द्वारा मनाया जाता है। इस अवसर पर, कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिक अपने औजारों की पूजा करते हैं।

वैदिक देवता के रूप में सर्वमान्य हैं विश्वकर्मा
विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में सर्वमान्य हैं। इनको गृहस्थ आश्रम के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक भी कहा गया है। अपने विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान के कारण देवशिल्पी विश्वकर्मा मानव समुदाय ही नहीं वरन देवगणों द्वारा भी पूजित हैं। देवता, नर, असुर, यक्ष और गंधर्व सभी में उनके प्रति सम्मान का भाव है। भगवान विश्वकर्मा के पूजन- अर्चना किये बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं माना जाता। इसी कारण विभिन्न कार्याे में प्रयुक्त होनेवाले औजारों, कल-कारखानों और विभिन्न उद्योगों में लगी मशीनों का पूजन विश्वकर्मा जयंती पर किया जाता है।

सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी के वंशज हैं विश्वकर्मा भगवान
विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वंशज माना गया है। ब्रह्माजी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तु देव थे। जिन्हें शिल्पशास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तु देव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ। अपने पिता के पद चिन्हों परचलते हुए विश्वकर्मा भी वास्तुकला के महान आचार्य बने। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ इनके पुत्र हैं। इन पांचों पुत्रों को वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में विशेषज्ञ माना जाता है। पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक स्वर्ग लोक की इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, असुर राजरावण की स्वर्णनगरी लंका, भगवान श्रीकृष्णकी समुद्र नगरी द्वारिका और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही जाता है। पौराणिक कथाओं में इन उत्कृष्ट नगरियों के निर्माण के रोचक विवरण मिलते हैं। उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर तो विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हे शिल्पावतार के रूप में सम्मानित किया था।

हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ और द्वारिकापुरी के निर्माणकर्ता भी हैं विश्वकर्मा
महाभारत में पांडव जहां रहते थे उस स्थान को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। इसका निर्माण भी विश्ववकर्मा ने किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वणकर्मा ने ही किया था। सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलयुग के हस्तिनापुर आदि के रचयिता विश्वकर्मा जी की पूजा अत्यन्त शुभकारी है। सृष्टि के प्रथम सूत्रधार, शिल्पकार और विश्व के पहले तकनीकी ग्रन्थ के रचयिता भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं की रक्षा के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था। विष्णु को चक्र, शिव के त्रिशूल, इंद्र को वज्र, हनुमान को गदा और कुबेर को पुष्पक विमान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किये थे। सीता स्वयंवर में जिस धनुष को श्रीराम ने तोड़ा था वह भी विश्वकर्मा के हाथों बना था। जिस रथ पर निर्भर रहकर श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन संसार को भस्म करने की शक्ति रखते थे उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। पार्वती के विवाह के लिए जो मण्डप और वेदी बनाई गई थी वह भी विश्वकर्मा ने ही तैयार की थी।

माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। इसके पीछे कहानी है कि शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को कहा तो विश्वकर्मा ने सोने का महल बना दिया। इस महल के पूजन के दौरान भगवानशिव ने राजा रावण को आंमत्रित किया। रावण महल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और जब भगवानशिव ने उससे दक्षिणा में कुछ देने को कहा तथा उसने महल ही मांग लिया। भगवान शिव ने उसे महल देकर वापस पर्वतों पर चले गए। विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए उड़ने वाले रथों का निर्माण किया था। विश्वकर्मा ने देवताओं के राजा इंद्र का हथियार वज्र का निर्माण किया था। वज्र को ऋषि दधीचि और अज्ञेयस्त्र की हड्डियों से बनाया गया है। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र उनकी शक्तिशाली रचनाओं में से एक था।

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