देहरादून। उत्तरकाशी में अब चूहे स्टाइल में पहाड़तोड़ ऑपरेशन शुरू कर दिया गया है। 42 मीटर ड्रिलिंग का काम पूरा हो चुका है। टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए अभी तक जितने भी प्रयास किए गए, सभी फेल हो गए है। अमेरिकन ऑगर मशीन टनल में अंदर पड़े मलबे के आगे जवाब दे गई। अब रेस्क्यू टीम ने 17वें दिन मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट माइनिंग तकनीक का साहरा लिया जायेगा।
कैसे होता है रैट माइनिंग में काम
जिस तरह के चूहा काम करता है, उसी तरह से रैट माइनिंग का काम होता है। रैट माइनिंग में सारा काम मैनुअली होता है। रैट माइनिंग में पांच से छह लोगों की एक टीम बनाई जाती है, जो सुरंग में आई बाधा को मैनुअली यानी हाथ से हटाती है, मतलब खुदाई करती है। जानकार बताते है कि सुरंग के अंदर 10 मीटर का रास्ता साफ करने के लिए करीब 20 से 22 घंटे तक लग जाते है। सुरंग के अंदर जाते समय एक्सपर्ट की टीम ड्रिलिंग मशीन के अलावा एक हथौड़ा, एक फावड़ा, एक ट्रॉवेल और ऑक्सीजन के लिए एक जीवन रक्षक उपकरण भी लेकर जाएगा। चार प्लान पर एक साथ हो रहा काम चल रहा है।
सुरंग के दूसरे छोर पर
यहां टीएचडीसी सुरंग के भीतर माइक्रो टनल बना रहा है, जिसका अभी तक केवल 12 मीटर हिस्सा बना है, जबकि सुरंग के ऊपर ओएनजीसी 324 मीटर वर्टिकल ड्रिल करेगा।
सिलक्यारा छोर के ऊपर
सिलक्यारा छोर के ऊपर एसजेवीएन 1.2 मीटर व्यास की ड्रिल कर रहा है। खबर लिखे जाने तक 42 मीटर ड्रिल हो चुकी थी। अब 50 मीटर का सफर तय करता है, जिसमें करीब 100 घंटे का समय लग सकता है। लिहाजा, यहां 30 नवंबर तक कामयाबी मिल सकती है। रेस्क्यू टीम टनल के ऊपर से एक मीटर चौड़ा मीटर रास्ता बना रही है, जहां से मजदूरों को बाहर निकाला जायेगा।
सिलक्यारा छोर के बराबर
यहां से ड्रिफ्ट टनल बनाने का प्लान तैयार हो चुका है, जिस पर काम शुरू होने वाला है। अगर यह टनल बनती है तो इससे अपेक्षाकृत कम समय में मजदूरों तक पहुंच बन सकती है। https://sarthakpahal.com/
मैन्युअल खोदाई
श्रमिकों को सुरक्षित निकालने के लिए छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम भी पहुंची है। सोमवार शाम सात बजे सेना की मदद से टीम ने हाथ से खोदाई शुरू कर दी। अब तक एक मीटर पाइप आगे बढ़ाया जा चुका है।