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गिंदी कौथिक: एक ऐसा मेला जहां सात खून भी हैं माफ

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यमकेश्वर। उत्तराखंड लोक उत्सवों, लोक परंरपराओं और लोक संस्कृति की विरासत को संजोए रखने के लिए हमेशा से ही जाना जाता रहा है। यहां के मेलों में लोक संस्कृति में देव जागृत होते हैं, तो यहां की सांस्कृतिक विरासत दुनिया के सांस्कृतिक मंचों पर पूजी जाती है। गिंदी मेले का इतिहास देखें तो पता चलता है गेंद मेले का उद्भव यमकेश्वर ब्लाक के थलनदी को ही माना जाता है। यहां अजमीर और मल्ला उदयपुर के बीच खेंद खेली जाती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार यमकेश्वर ब्लाक के अजमीर पट्टी के नाली गांव के जमींदार की गिदोरी नाम की लड़की का विवाह उदयपुर पट्टी के कस्याली गांव में हुआ था। पारिवारिक विवाद होने पर गिदोरी घर छोड़कर थलनदी आ गई। नाली गांव के लोगों को जब यह पता चला कि कि गिदोरी ससुराल छोड़कर आ गई है तो वे उसे अपने साथ ले जाने लगे, जबकि कस्याली गांव के लोग उसे वापस ससुराल ले जाने का प्रयास करने लगे। दोनों गांव के लोगों के बीच गिदोरी के लिए संघर्ष और छीना झपटी हुई, जिसमें गिदोरी की मौत हो गई। तभीू से थलनदी में दोनों पट्टियों में गेंद के लिए संघर्ष होता है। कटघर में यह गेंद मेला उदयपुर और ढांगू के बीच खेला जाता है। डाडामंडी के गेंद मेले में गिंदी खेलते वक्त 7 लाशें तक माफ हैं, जबकि थलनदी गेंद मेले में 5 लाश तक माफी मानी जाती है।

यह एक सामूहिक शक्ति परीक्षण का मेला है। इस मेले में न तो खिलाडियों की संख्या नियत होती है और न इसमें कोई विशेष नियम कायदे ही होते हैं। दो दल होते हैं, चमड़ी से मढ़ी एक गेंद को छीन कर कर अपनी सीमा में ले जाना होता है। जो दल गेंद को पहले अपनी सीमा में ले जाते हैं, वही टीम विजेता हो जाती है।

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