
नैनीताल। विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों को हाईकोर्ट ने दिया तगड़ा झटका दिया है। उत्तराखंड विधानसभा में हुई भर्तियों की जांच के लिए बनी तीन सदस्यीय विशेषज्ञ जांच कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर 2016 में हुईं 150 तदर्थ नियुक्तियां, 2020 में छह और 2021 में हुईं 72 तदर्थ नियुक्तियां और उपनल के माध्यम से हुईं 22 नियुक्तियां रद्द कर दी गयी थीं।
एकलपीठ के आदेश को किया रद्द
नैनीताल हाईकोर्ट ने बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने के एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया है। अदालत ने स्पीकर के फैसले को सही ठहराया। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीट ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्थगित नहीं किया जा सकता है। पूर्व में एकलपीठ ने बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने के आदेश दिये थे। हाईकोर्ट के आदेश से बर्खास्त कर्मचारियों को तगड़ा झटका लगा है।
एक साथ इतने कर्मचारियों का बर्खास्त करना लोकहित में नहीं
बर्खास्त कर्मियों की ओर दायर याचिकाओं में कहा गया था कि स्पीकर ने लोकहित का हवाला देते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 और 29 सितंबर को समाप्त कर दी थीं। बर्खास्तगी आदेश में उन्हें हटाने का आधार और कारण का उल्लेख नहीं किया गया। उनका कहना था कि एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित में नहीं है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। उनका कहना था कि 2002 से 2015 तक हुई 396 पदों पर बैकडोर भर्तियों को स्थाई किया जा चुका है। 2014 में भर्ती कर्मचारियों को चार साल में ही स्थाई कर दिया गया, जबकि उन्हें छह साल से स्थाई नहीं किया गया और बर्खास्त कर दिया गया।
सीएम ने की थी पहल
विधानसभा में बैकडोर भर्ती पर लगे कर्मचारियों को हटाने की कार्रवाई सीएम पुष्कर सिंह धामी की पहल के बाद हुई थी। कार्रवाई के लिए उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर अनुरोध किया था। जांच के बाद कर्मयों को हटाने की फाइल आते ही उन्होंने अनुमोदन दे दिया था।
खंडपीठ का निर्णय न्याय की जीत है। सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित कभी नहीं हो सकता। विधानसभा के हित, सदन की गरिमा और प्रदेश के युवाओं को न्याय दिलाने के लिए इस प्रकरण पर अंतिम निर्णय तक लड़ा जाएगा।
ऋतु खंडूड़ी, अध्यक्ष, विधानसभा https://sarthakpahal.com/