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मशकबीन पर ‘बेडू पाको बारो मासा’ की धुन सुन आंखों के सामने घूमने लगती है पहाड़ की वादियां video

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केएस रावत। मशकबीन, बीनबाजा, मशकबाजा सिर्फ पहाड़ के समारोहों का हिस्सा ही नहीं बनी, बल्कि लोगों के रग-रग में रच-बस गयी है। ऐसा नहीं है कि मशकबीन से पहले कोई सुरीला वाद्य उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की संगत के लिए नहीं था. मशकबीन के आने से पहले उत्तराखण्ड के लोकसंगीत में सारंगी का इस्तेमाल किया जाता था. इसी सारंगी को पृष्ठभूमि में धकेलकर बैगपाइप ने अपनी जगह बनायी और सारंगी उत्तराखण्ड से विलुप्त हो गयी.

पांच पाइपों वाला है वाद्य यंत्र हैं मशकबीन

इस वाद्य यंत्र का प्रयोग प्राय: शादी समारोहों में किया जाता है। एक चमड़े के थैले पर पांच पाइप लगी हुई होती हैं तथा एक पाइप से चमड़े के अंदर हवा भर दी जाती है तथा दूसरे पाइप को बांसुरी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा बाकी के तीन पाइप धुन पैदा करते हैं जो कि कंधे की ओर खड़े रहते हैं। भारतीय सेना में भी मशकबीन का प्रयोग होता है।

मांगलिक आयोजनों में ढोल-दमाऊ के साथ अगर मशकबीन न हो तो संगत को पूर्णता ही नहीं मिलती। वादक जब मशकबीन में ‘बेडू पाको बारामासा’, ‘टक-टका-टक कमला’, ‘कैले बजे मुरूली ओ बैणा ऊंची-ऊंची डान्यूं मा’ जैसे लोकगीतों की धुन बजाता है तो कदम खुद-ब-खुद थिरकने को मजबूर हो जाते हैं और आप जहां कहीं भी हों आपकी आंखों के सामने अपना पहाड़ बरबस घूमने लगता है।

मशकबीन का स्वर उत्तराखण्ड के लोकसंगीत के सर्वथा मुफीद था. इसका एक कारण शायद यह भी था कि स्कॉटलैंड का भूगोल और जनजीवन उत्तराखण्ड से ख़ासा मिलता जुलता था. आज भी आप किसी स्कॉटिश धुन को सुनकर उसके उत्तराखण्ड की लोकधुनों के साथ समानता से एकबारगी हैरान रह जाते हैं.

पहाड़ी शादियां मशकबीन के बिना अधूरी
मशकबीन के बिना जैसे उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की कल्पना तक करना मुश्किल है. मशक्बाजा या मशकबीन के सुर और पहाड़ की वादियां एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हुए लगते हैं. मशकबीन की धुन सुनते ही जो पहली चीज मन में आती है वह है उत्तराखण्ड के पहाड़. ठेठ पहाड़ी शादियां मशकबीन के बिना संपन्न ही नहीं होती. कुमाऊँ का सबसे लोकप्रिय नृत्य छोलिया की जान मशकबीन की धुन ही है. उत्तराखण्ड के सभी उत्सव ढोल-दमाऊ की ताल के साथ मशकबीन के सुरों की संगत में संपन्न होते हैं.

आज जिस मशकबीन के बिना उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की कल्पना तक कर पाना मुश्किल है वह इस राज्य में सदियों से बजाया जा रहा परंपरागत वाद्य यंत्र नहीं है. दरअसल ब्रिटिश राज के साथ ही उत्तराखण्ड में आया स्कॉटलैंड का बाजा बैगपाइप का नया नाम है मशकबीन। उत्तराखण्ड के अलावा राजस्थान, नेपाल, पाकिस्तान और यहां तक कि अफगानिस्तान के कई हिस्सों में भी मशकबीन की धुनें सुनने को मिल जाती हैं। http://देश विदेश की ताजा खबरों के लिए देखते रहिये https://sarthakpahal.com/

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